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________________ परिवार के प्रति समर्पित और निष्ठावान थे। क्रोध तो उनको आता ही नहीं था। कठिन से कठिन समस्या का समाधान समझा-बुझाकर कर लेना उनके लिए बड़ा सरल और प्रिय कार्य था। वे पद्मावती पुरवाल पंचायत के लगभग 30 वर्ष चौधरी रहे। सर्वश्री जवाहरलाल, चुन्नी लाल, देवकुमार और रोशनलाल आपके भाई हैं। श्री जवाहरलालजी अविवाहित थे। काफी समय पहले उनका स्वर्गवास हो गया। श्री चुन्नीलाल जी के कोई पुत्र नहीं है। अब उनका भी स्वर्गवास हो चुका है। श्री चुन्नीलाल जी का भी स्वर्गवास हो चुका है। श्री देवकुमार जी राउरकेला में कार्य करते हैं। अपनी दुकान जाते समय 1984 के दंगों में श्री रोशनलाल जी की किसी दंगाई की गोली लगने से मृत्यु हो गयी। श्री पवन जैन आदि उनके पुत्र हैं। श्री हुकुमचंद जी का 1982 में निधन हो गया। उनके निधन के बाद परिवार की यशकीर्ति की हानि हुई है। श्री पद्मावतीपुरवाल पंचायत के संगठन में भी शिथिलता आई है। स्व. श्री नेमीचन्द जैन दालसेव वाले एटा जिले के उड़ेसर जनपद से श्री नेमीचन्द जी पुत्र श्री प्यारेलाल जी 1914 में दिल्ली आये। धर्मपुरा की भूतवाली गली में आपने अपना निवास रखा और वहीं से नमकीन दाल सेवों का थोक व्यापार करते थे। श्री सुरेशचन्द जी आपके इकलौते पुत्र थे। श्री सुरेशचन्द जी को श्री हुकमचन्द जैन के स्वर्गवास के बाद पंचायत का चौधरी बनाया था। आप बड़े सरल और मिलनसार व्यक्ति थे। 1984 में आपका स्वर्गवास हो गया। पुत्र श्री सुरेशचंद की असमय में मृत्यु से दुःखी श्री नेमीचन्द जी भोलानाथ नगर अपने मकान में चले गये। वहां उनका 1986 में स्वर्गवास हो गया। श्री सुरेशचन्द जी के बड़े पुत्र श्री प्रमोदकुमार का 1984 में स्वर्गवास हो गया। श्री विनोद कुमार आदि उनके पुत्र हैं। पद्मावतीपुरवाल दिगम्बर जैन जाति का उद्भव और विकास 241
SR No.010135
Book TitlePadmavati Purval Digambar Jain Jati ka Udbhav aur Vikas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjit Jain
PublisherPragatishil Padmavati Purval Digambar Jain Sangathan Panjikrut
Publication Year2005
Total Pages449
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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