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________________ वृन्दावनदासजी ने क्षेत्र में अपनी अच्छी धाक जमाई। 1924-25 में पंचायत के लिए एक मकान की व्यवस्था हो जाने के बाद उसके उपयोग को लेकर उठे विवाद से उनका मन बड़ा खिन्न रहा । अस्थायी रूप से उसमें मंदिर बन जाने के बाद उनके मन में उस मन्दिर जी को स्थायी और भव्य रूप में देखने की तीव्र आकांक्षा रही, पर 1937 में ही स्वर्गवास हो जाने के कारण उनकी वह इच्छा पूरी नहीं हो सकी। बाद में उनके परिवारजनों ने पंचायत और मंदिरजी को पूरा सहयोग दे कर अपने उत्तरदायित्व का निर्वाह किया । श्री वृन्दावनदास जी के बड़े पुत्र श्री फकीरचन्द जी मिलनसार, खुशमिजाज और सामाजिक व्यक्ति थे। वे पंचायत के सह-सचिव थे । यकायक हृदय गति रुक जाने से 1955 में उनका स्वर्गवास हो गया। उस समय उनके तीनों पुत्र बहुत छोटे थे। घर की एकजुटता ने परिवार की शान को बनाये रखा। उनके बड़े पुत्र श्री रमेशचन्द जी ने परिवार के साथ-साथ पंचायत की जिम्मेदारी भी सफलतापूर्वक निभाई। लगभग 12 वर्ष तक वे धर्मशाला के प्रबन्धक रहे। इसी बीच श्री फकीरचन्द जी के दूसरे पुत्र श्री सुरेशचन्द जी की एक दुर्घटना में 1973 में मृत्यु हो गई । उनका पुत्र राजेश जैन उत्साही लड़का है। लगभग 11 वर्ष बाद 1984 में श्री रमेशचन्द जी के इकलौते पुत्र राजीव जैन का एक दुर्घटना में स्वर्गवास हो गया। पूरा परिवार शोक में डूब गया। पर धर्म में आस्था रखने वाला विपदाओं से शीघ्र उभर जाता है। समय के साथ-साथ परिवारजन संभले । वैसे वह अभाव कभी भर नहीं सका। 29-8-94 को पंचायत ने श्री रमेश जी को सर्वसम्मति से अपना अध्यक्ष चुना। पंचायत ने श्री रमेश चन्दजी को अगस्त 2004 में पुनः अध्यक्ष चुना। पिछले कार्यकाल में अनेक उपलब्धियां रहीं। श्री फकीरचन्द जी के तृतीय पुत्र श्री नरेश चन्द जैन कागज के ख्यातिप्राप्त व्यापारी हैं। वे खरे और स्पष्टवादी होने के कारण संस्थाओं में पदों से दूर रहते हैं पर सभी आयोजनों में यथोचित अपना योगदान देते हैं। पद्मावतीपुरवाल दिगम्बर जैन जाति का उद्भव और विकास 222
SR No.010135
Book TitlePadmavati Purval Digambar Jain Jati ka Udbhav aur Vikas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjit Jain
PublisherPragatishil Padmavati Purval Digambar Jain Sangathan Panjikrut
Publication Year2005
Total Pages449
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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