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________________ धूलेवाथणी या 'केशरियालाल' भी कहते हैं। यह पाषाण निर्मित पद्मासन प्रतिमा श्याम वर्ण साढ़े तीन फुट अवगाहना वाली है। इस प्रतिमा के नानाविध चमत्कारों की किवदंतियां जनता में बहुप्रचलित हैं इसके चमत्कारों से आकर्षित होकर न केवल दिगम्बर जैन, अपितु श्वेताम्बर जैन, हिन्दू, मीन आदि सभी लोग यहां आकर मनौती मनाते हैं। अनेक लोग यहां केशर चढ़ाते हैं, जिससे इस क्षेत्र का नाम 'केशरियाजी' पड़ गया है। श्री सुनहरी लाल जैन द्वारा यहां एक कक्ष का निर्माण कराया गया। प्रतिमाजी विराजमान कराई1. ब्र. श्री अरविन्द कुमार जी ने नया बाजार लश्कर (ग्वालियर) मंदिरजी में भगवान पार्श्वनाथ की प्रतिमाजी। 2. डॉ. एस.के. जैन गनेश कॉलोनी, नया बाजार वालों ने श्री सोनागिरजी के तलहरी के मंदिर नं. 5 में पार्श्वनाथ जी की प्रतिमा जी। 3. आचार्य श्री सुधर्मसागरजी के गृहस्थ भाई पं. मक्खनलाला, लालारामजी आदि ने एक प्रतिमा जी गजपंथा में। 4. उन्होंने ही धर्मपुरा दिल्ली मंदिरजी में 3 फीट अवगाहना की अष्ट भ्रातिहार्य युक्त प्रतिमाजी। ब्र. पांडे श्री निवासजी ने फीरोजाबाद के नसियाजी के मंदिर में शीतलनाथ जी की प्रतिष्ठा कराई तथा इंदौर, उज्जैन, रतलाम के मंदिरों में प्रतिष्ठा कराई। 6. श्री हीरालाल जी जारखी वालों ने कुतुकपुर में जिनालय बनवाया। 7. श्री भगवतस्वरूप जी 'भगवत' ने मरसलगंज में प्रतिभाजी विराजमान कराई। पद्मावतीपुरवाल दिगम्बर जैन जाति का उद्भव और विकास 5. 188
SR No.010135
Book TitlePadmavati Purval Digambar Jain Jati ka Udbhav aur Vikas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjit Jain
PublisherPragatishil Padmavati Purval Digambar Jain Sangathan Panjikrut
Publication Year2005
Total Pages449
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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