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________________ पहुंचते रहे। इस प्रकार थोड़े ही काल में चांदनपुर वाले महावीर के अतिशय का यश-सौरभ चारों दिशाओं में फैल गया। यात्रियों की संख्या निरन्तर बढ़ती गई। यात्रियों की सुविधा के लिए धर्मप्रेमी दिगम्बर जैन बन्धुओं ने यहां धर्मशालाएं बनवायी और मंदिर में भी धीरे-धीरे परिवर्तन परिवर्धन होते रहे। योगदान-यहीं शान्तिवीर नगर नदी के दूसरी और पूर्वी किनारे पर स्थित है। इसकी स्थापना स्व. आचार्य शिवसागर जी की प्ररेणा से आचार्य शान्तिसागरजी और आचार्य वीरसागरजी के नाम पर की गई है। यहां अट्ठाइस फीट ऊंची शांतिनाथ स्वामी की विशाल मूर्ति के अतिरिक्त 24 तीर्थंकरों और उनके देवताओं की मूर्तियां विराजमान है। शान्तिवीर नगर में श्री सुनहरी लाल जैन (आगरा) ने एक कक्ष का निर्माण कराया। श्री ऋषभदेव (केशरिया जी) श्री ऋषभदेव जी तीर्थ राजस्थान प्रदेश के उदयपुर जिले में उदयपुर शहर से 64 कि.मी. दूर खेरवाड़ा तहसील में कोथल नामक छोटी-सी नदी के किनारे अवस्थित है। ग्राम का नाम धुलेब है। यह गांव ऋषभदेव मूलनायक प्रतिमा के प्रकट होने के पश्चात बसा है, ऐसा लगता है। भगवान के नाम पर गांव का नाम श्री ऋषभदेव तथा केशर चढ़ाने की प्रथा के कारण केशरिया जी प्रचलित है। यहां पहुंचने के लिए पश्चिमी रेलवे के उदयपुर रेलवे स्टेशन पर उतरना पड़ता है। वहां से ऋषभदेव जी तक पक्की सड़क है तथा नियमित बस सेवा है। श्री ऋषभदेव (केशरिया जी) क्षेत्र अतिशय क्षेत्र के रूप में विख्यात है। यहां की मूलनायक प्रतिमा भगवान ऋषभदेव की है। प्रतिमा श्याम वर्ण की होने से भील लोग इसे कालाजी और कारिया बाबा कहते हैं। कुछ लोग पद्मावतीपुरवाल दिगम्बर जैन जाति का उद्भव और विकास 187
SR No.010135
Book TitlePadmavati Purval Digambar Jain Jati ka Udbhav aur Vikas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjit Jain
PublisherPragatishil Padmavati Purval Digambar Jain Sangathan Panjikrut
Publication Year2005
Total Pages449
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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