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________________ जारखी वाले, टूंडला चौराहा ने बनवाया वि.नि.सं. 2501 पर्वतराज पर मंदिर नं. 69 व 70 के बीच के मार्ग में-यह भाग श्री मगनमल लाममल जी पद्मावती पुरवाल शुजालपुर सिटी ने बनवाया वि. नि.सं. 2513 पर्वतराज के मुख्य मंदिर नं. 57 चन्द्रप्रभ जिनालय के गर्भग्रह के बगल में मंदिर जी के परिक्रमा पथ में भगवान नेमिनाथ की वेदी के पीछे दायीं तरफ महावीर स्तुति रचयिता स्व. श्री भगवत जैन एत्मादपुर (आगरा) जय वीर कहो, जय वीर कहो त्रिशलानंदन अतिवीर कहो।। हर सांस यही झनकार उठे। धरती नभ सब गुंजार उठे। प्रेमी का प्राण पुकार उठे। जयवीर कहो, जयवीर कहो॥1॥ यह दुनियां एक कहानी है। दरिया का बहता पानी है। बस दो दिन की जिंदगानी है। जयवीर कहो, जयवीर कहो॥2॥ नरजीवन का है सार यही। सुख के पक्ष का आधार यही। बस लगातार तू तार यही जयवीर कहो, जयवीर कहो॥3॥ यह संकट भंजन हारा है। पावतीपुरवाल दिगम्बर जैन जाति का उद्भव और विकास 171
SR No.010135
Book TitlePadmavati Purval Digambar Jain Jati ka Udbhav aur Vikas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjit Jain
PublisherPragatishil Padmavati Purval Digambar Jain Sangathan Panjikrut
Publication Year2005
Total Pages449
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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