SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 195
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आया और उनके समवशरण में ही योधेय नरेश अरिंजय के राजपुत्र नंगकुमार और अनंगकुमार ने दीक्षा ली और घोर तप करके इसी पर्वतराज से मोक्ष पद प्राप्त किया। नंग-अनंग, चिन्तागति, पूर्णचन्द्र, अशोक सेन, श्रीदत्त, स्वर्णभद्र आदि मुनियों सहित यहां से साढ़े पांच कोटि मुनि मुक्ति पधारे। इस कारण यह क्षेत्र निर्वाण क्षेत्र है, सिद्ध क्षेत्र है । " पद्मावतीपुरवाल समाज का योगदान- जिस समय सिद्धक्षेत्र सोनागिर कमेंटी ने क्षेत्र का प्रबन्ध लिया उस समय पर्वतराज के मंदिरों की वन्दना के लिए जाने का मार्ग बड़ा कंटकाकीर्ण था। पैरों में कंकड़ एवं कांटे चुभते थे। यात्रियों को बड़ी असुविधा होती थी। कमेटी ने इस मार्ग को सही कराया, मार्बल चिप्स लगवाये, कहीं सीमेन्ट का सुगम रास्ता बनाया। इस मार्ग में योगदान निम्न प्रकार है - पर्वतराज पर जाने वाले राजद्वार पर मुख्य गेट में प्रवेश करने पर - 50 नम्बर प्लेट - स्वर्गीय पूज्य पिता श्री मथुराप्रसाद जी की पुण्य स्मृति में रघुवंशी लालजी पद्मावती पुरवाल पिलुआ (एटा) निवासी हाल टूंडला (आगरा) ने बनवाया वी. सं. 2491 54 नम्बर की प्लेट - श्री दिगम्बर जैन सिद्धक्षेत्र सोनागिर की राजद्वार के फर्श का यह भाग कलकत्ता निवासी श्री जुगमंदिरदास पद्मावती पुरवाल ने अपने स्वर्गीय पिताश्री मुन्नीलाल जी की पुण्य स्मृति में बनवाया वि. सं. 2491 आगे चलकर पर्वतराज की वन्दना के मार्ग में मंदिर नंबर 25 व 26 के बीच सीढ़ी - स्व. लाला बाबूलाल जी की पुण्य स्मृति में सुपुत्र श्री ला. चरणलाल कालीचरण रामस्वरूप जी पद्मावती पुरवाल टूडला ने बनवाई वि. सं. 2495 पर्वतराज पर मंदिर नं. 58 के सामने चबूतरा पर - यह भाग चक्र चूरामणि पं. नरसिंहदास जी चावली की सुपुत्री शांतिदेवी ध.प. कालीचरण पद्मावतीपुरवाल दिगम्बर जैन जाति का उद्भव और विकास 170
SR No.010135
Book TitlePadmavati Purval Digambar Jain Jati ka Udbhav aur Vikas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjit Jain
PublisherPragatishil Padmavati Purval Digambar Jain Sangathan Panjikrut
Publication Year2005
Total Pages449
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy