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________________ सन् 1937 से पुनः व्यापार शुरू किया। 1940 में पत्नी के शोक को शान्ति से सहन किया। सन् 1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन में क्रान्तिकारी नेता अरुणा आसफ अली, श्री जयप्रकाश नारायण और डा. राममनोहर लोहिया को उनके फरारी जीवन में सहायता की तथा अपने घर में आश्रय दिया। साथी जुगमन्दिर दास जैन ने साधनहीनता की अवस्था में जीवन यात्रा प्रारम्भ की। किन्तु उन्होंने देश जनता और समाज को इतना दिया कि उनका जीवन सार्थक और सफल बन गया और वह सदैव के लिए अमर बन गये। सन् 1942 में उन्होंने धातु के बर्तनों का निजी व्यापार शुरू किया। कलकत्ता के लिलुआ नामक स्थान पर स्टेनलेस स्टील का कारखाना स्थापित किया। यह उनके कठोरतम श्रम, योग्यता, कार्यकुशलता, विनम्रता और ईमानदारी का ही सुफल था। सन् 1953 में बाबू छोटेलालजी कलकत्ता की प्रेरणा से समाज सेवा की दिशा में आये। सरल स्वभाव, कार्यनिष्ठ होने के कारण जुगमन्दिर दास जी अनेक संस्थाओं के जन्म और जीवनदाता रहे। स्टेनलेस स्टील के बर्तनों के उत्पादन कर्ता होकर आपने काफी कीर्ति कमाई। पद्मावती पुरवाल जैन डायरेक्टरी का प्रकाशन कर आपने अपनी निष्ठा, विद्वता एवं कर्मठता का परिचय दिया। व्यक्तित्व-सौम्य मुखमुद्रा वाले बाबूजी विद्वानों के अनुरागी थे। आप पद्मावती पुरवाल समाज के भूषण ले। पद्मक्ती संदेश के जन्म और जीवनदाता आप ही थे। इस पत्र ने आपके विषय में विशेषांक भी निकाला था जिसमें आपके पारिवारिक, सामजिक, धार्मिक, राष्ट्रीय कार्यों का उल्लेख है। बाबू देवीप्रसाद जैन, फिरोजाबाद स्व. बाबू देवीप्रसाद जी जन्मजात राष्ट्रीय कार्यकर्ता थे। सन् 1930-31 पपावतीपुरवाल दिगम्बर जैन जाति का उद्भव और विकास 150
SR No.010135
Book TitlePadmavati Purval Digambar Jain Jati ka Udbhav aur Vikas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjit Jain
PublisherPragatishil Padmavati Purval Digambar Jain Sangathan Panjikrut
Publication Year2005
Total Pages449
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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