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________________ एत्मादपुर, तहसील के गांव पमारी से संबंधित था। क्रमशः 5 वर्ष और 8 वर्ष की अवस्था में माता-पिता का वियोग सहना पड़ा। अध्ययन व शिक्षा-आपका अध्ययन ब्यावर महाविद्यालय और बाद में गोपाल दि. जैन सिद्धान्त विद्यालय, मोरैना में हुआ। आप एक मेधावी छात्र रहे। सन् 1930 में असहयोग आन्दोलन के समय ब्रिटिश शासन के विरुद्ध विद्यालय के छात्रों को उकसाया परन्तु तत्कालीन जिलाधीश की रिपोर्ट से इनकी गतिविधियों पर विद्यालय में नियंत्रण रखा। अध्यापन कार्य-आप वर्षों सर सेठ हुकमचन्द जी, इन्दौर के यहां पारिवारिक अध्यापक रहे। आपका सत्संग इन्दौर में स्व. पं.देवकीनन्दन जी शास्त्री, स्व. पं. बंशीधर जी न्यायालंकार, स्व. पं. खूबचन्द जी शास्त्री आदि जैसे उद्भट विद्वानों से हुआ। परस्पर जैन दर्शन के गूढ़ तत्वों के रहस्य का ज्ञान प्राप्त किया। सन् 1963 में सेठजी की पारमार्थिक संस्थाओं के मंत्री रहे। पुनः सन् 1966 से देहली में लालबहादुर शास्त्री केन्द्रीय संस्कृत विद्यापीठ में (शिक्षा मंत्रालय से संबंधित) प्रवक्ता नियुक्त हुए। आपकी अध्यापन पटुता ने शीघ्र ही आपको रीडर पद पर पदस्थ करके 'जैन दर्शन' का विभागाध्यक्ष बना दिया। शैक्षणिक योग्यता-अंग्रेजी साहित्य से बी.ए., संस्कृत में एम.ए. एवं साहित्याचार्य करने के बाद 1963 में 'आचार्य कुन्दकुन्द और उनका समयसार' विषय पर शोध-प्रबन्ध लिखकर आगरा विश्वविद्यालय से पीएच.डी. की उपाधि ग्रहण की। इसके अलावा संस्कृत एसोसियेशन की सर्वोच्च उपाधि न्यायतीर्थ एवं काव्यतीर्थ प्राप्त की। समाज के प्रकाश स्तम्भ-आज अध्यात्मक के क्षेत्र में निश्चयनय की दुहाई देकर जैन साधुओं और साध्वियों के प्रति हेय दृष्टि का वातावरण कुछ मुमुक्षुओं द्वारा पैदा किया जाकर लोक सम्मत धर्म को व्यवहारिक पृष्ठ भूमि से काटकर मात्र अनन्तज्ञान चैतन्य स्वरूप कहकर स्वयं को पद्मावतीपुरवाल दिगम्बर जैन जाति का उद्भव और विकास 128
SR No.010135
Book TitlePadmavati Purval Digambar Jain Jati ka Udbhav aur Vikas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjit Jain
PublisherPragatishil Padmavati Purval Digambar Jain Sangathan Panjikrut
Publication Year2005
Total Pages449
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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