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________________ आपने छात्रों को ही नहीं, कतिपय मुनियों और गृहस्थों को पढ़ाया। अनेक प्रसिद्ध विद्वान आपके शिष्य हैं। आपने काशी में वैष्णव विद्वानों के साथ संस्कृत भाषा में होने वाले शास्त्रार्थों में भाग लेकर जैन धर्म की प्रभावना की। दिल्ली, भिवानी, अजमेर, नौगांव आदि जगहों पर आर्यसमाजियों के साथ शास्त्रार्थ कर जिन शासन का महत्व प्रगट किया। दिल्ली, अजमेर, सुजानगढ़, बम्बई, जबलपुर आदि नगरों में दशलक्षण पर्व के अवसर पर अपने प्रभावी शास्त्र प्रवचन द्वारा लाखों जैन बन्धुओं को जैन प्रमेयों का ज्ञान कराया। जिसके फलस्वरूप आपको न्यायभूषण, न्याय दिवाकर, तर्क शिरोमणि, प्रवचन चक्रवर्ती, न्यायरत्न आदि सम्मानित पदवियां प्राप्त हुईं। आपका मई 1968 में फिरोजाबाद जैन मेले के अवसर पर एक सार्वजनिक भव्य अभिनन्दन हुआ था जो आपके प्रखर बौद्धिक और विद्वतापूर्ण व्यक्तित्व का प्रतीक था। आप जयपुर, बनारस और कलकत्ता आदि विश्वविद्यालयों की शास्त्रीय, आचार्य एवं दर्शनाचार्य आदि परीक्षाओं के परीक्षक रहे। 2 जून 1968 को फिरोजाबाद की प्रतिष्ठित साहित्यिक संस्था मानसरोवर साहित्य संगम ने आदरणीय पंडित जी का सार्वजनिक सम्मान करते हुए उनके सम्मान में प्रकाशित 'प्रशस्तिका' और 'अभिनन्दन पत्र' भेंटकर उन्हें 'नगर-गौरव' की उपाधि से विभूषित किया। जिनशासन की प्रभावना आपके जीवन का मुख्य लक्ष्य रहा। आपने निश्चय और व्यवहार नयों को पकड़कर श्रुत प्रभाव को सर्वोच्च स्वीकारिता दी। आपका कहना रहा कि एकान्त का कदाग्रह व्यवहार अभीष्ट नहीं है। श्री कुन्दकुन्दाचार्य के सभी ग्रन्थों पर अटल श्रद्धान रहा। जैन सिद्धान्त संबंधी आपके सैकड़ों लेख प्रकाशित हुए। 8 नवम्बर 1971 को आपका यह शरीर पंच-तत्वों में विलीन हो गया। 121 पद्मावतीपुरवाल दिगम्बर जैन जाति का उद्भव और विकास
SR No.010135
Book TitlePadmavati Purval Digambar Jain Jati ka Udbhav aur Vikas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjit Jain
PublisherPragatishil Padmavati Purval Digambar Jain Sangathan Panjikrut
Publication Year2005
Total Pages449
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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