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________________ से न्यायोपाध्याय एवं साहित्य परीक्षा दी। संवत् 1964-66 तक स्याद्वाद विद्यालय बनारस से मध्यमा, आचार्य व न्यायाचार्य की परीक्षाएं उत्तीर्ण की। श्रदेय गोपालदास वरैया दि. जैन सिद्धान्त विद्यालय मोरैना में सिद्धान्त का गहन अध्ययन कर गोम्मटसार, त्रिलोकसार और पंचाध्यायी आदि का मंथन किया। आर्थिक उपार्जन हेतु आपने अध्यापन के अतिरिक्त अन्य को संसाधन नहीं अपनाया। वि.सं. 1958 से सं. 2018 तक लगभग 60 वर्ष तक आपने गोपालदास वरैया दि. जैन सिद्धान्त विद्यालय मुरैना में, जम्बू विद्यालय सहारनपुर में (24 वर्ष प्रधानाध्यापक) तथा पन्नालाल दिगम्बर जैन कालिज फिरोजाबाद में धर्माध्यापक पद पर कार्य किया। आपने उक्त दोनों मोरैना और सहारनपुर विद्यालय में 400 प्रौढ़ जैन विद्वान तैयार किये। 'विद्यादानेन वर्द्धते' की नीति में आस्था रखने वाले श्रद्धेय पंडित जी ने अपने छात्रों को बड़े श्रम से एवं निष्ठापूर्वक जैन सिद्धान्त के ऊंचे-ऊंचे ग्रन्थों का ज्ञान दिया। प्रतिदिन बह्ममुहूर्त में एक करवट से सोकर उठना और एक मील तक जाकर भ्रमण करना अपनी वार्धक्य अवस्था में भी नियमित रखा। घूमते हुए संस्कृत श्लोकों, स्त्रोतों का मनन करते जाना आपका स्वभाव बन गया था। घूमकर लौटकर आने पर जाप्य, सामायिक एवं ध्यान करना नित्य कर्म था। पुरुषार्थ पूर्वक इन्द्रिय-दमन, आत्मरमण, कषाय विग्रह एवं शुभ भावनायें आना आपके दैहिक तप में समग्रीभूत था। जिनदर्शन एवं पूजन के अनुरागी, मुनियों में अतिशय भक्ति रखने वाले, दूसरे प्राणियों के उपकार की वांछा लिये आप दूसरी प्रतिमा के धारी एक चारित्रशील व्यक्ति थे। आपने धर्मफल सिद्धान्त, षद्रव्यों की आकृतियों, जैन शासन रहस्य, दर्शन-दिग्दर्शन आदि पुस्तकें लिखी हैं। पधावतीपुरवाल दिगम्बर जैन जाति का उद्भव और विकास 120
SR No.010135
Book TitlePadmavati Purval Digambar Jain Jati ka Udbhav aur Vikas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjit Jain
PublisherPragatishil Padmavati Purval Digambar Jain Sangathan Panjikrut
Publication Year2005
Total Pages449
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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