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________________ किया। वैद्यक पढ़ने के विचार से पीलीभीत के प्रसिद्ध ललितहरी वैद्यक विद्यालय में भी प्रविष्ट हुए पर जिन दर्शन का साधन नहीं देख विद्यालय छोड़ आए और बनारस के विद्यालय में न्यायतीर्थ के ग्रन्थ पढ़े। मोरैना आकर पंडित प्रवर पंडित गोपालदास जी वरैया से उच्च कोटि के शास्त्रीय धार्मिक ग्रन्थ पढ़े । कार्य- जब पंडित धन्नालाल जी और खूबचन्द जी ने अतीव आग्रह किया तब आप कलकत्ते की कपड़े की दुकान छोड़ मोरैना आ गये। गुरुणा गुरु गोपालदास जी वरैया के कीर्तिस्तम्भ जैसे गोपाल दिगम्बर जैन महाविद्यालय का चार युगों तक अक्षुण्ण रूप से संचालन कर आपने सही अर्थों में गुरुदक्षिणा चुकाई व समाज सेवा की। समाज में आचार-विचारवान विद्वान को जन्म और जीवन देने का श्रेय आपको है । इनमें डा. लालबहादुर जी शास्त्री, कुंजीलाल जी शास्त्री, भागचन्द जी शास्त्री, श्रेयांस कुमार जी काव्यतीर्थ, फूलचन्द जी शास्त्री, मल्लिनाथ जी शास्त्री, धर्मचक्रवर्ती जी शास्त्री आदि हैं । आपके छात्रों में आचार्य विमलसागर जी मुनि पार्श्वसागर जी, प्रबोधसागर जी, भट्टारक देवेन्द्रकीर्ति जी व लक्ष्मीसेन जी भी हैं। जिन पर आपको गर्व और गौरव रहा। रैना विद्यालय के आप प्रधानाचार्य ही नहीं रहे बल्कि उसकी आर्थिक व्यवस्था के सुयोग्य स्तम्भ रहे । कलकत्ता से सत्तर हजार रुपये लाये तो देहली से बीस हजार लाये। ग्वालियर से शिक्षा संभाग से मिलने वाली 30 /- रुपये की सहायता को 100/- करवाया। महाराजा ग्वालियर से मिलकर बारह बीघा जमीन संस्था को दिलाई जिससे 750/- रुपये मासिक किराया आता रहा । संस्था के ऊपरी भाग में आपने वर्धमान चैत्यालय बनवाया। पंच परमेष्ठियों की भी प्रतिमायें बनवाईं। गुरुदेव गोपालदास जी वरैया का शुक्ल वर्ण का साढ़े तीन फुट ऊंचा पद्मासन स्टेचू भी आपने बनवाया । पद्मावतीपुरवाल दिगम्बर जैन जाति का उद्भव और विकास 114
SR No.010135
Book TitlePadmavati Purval Digambar Jain Jati ka Udbhav aur Vikas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjit Jain
PublisherPragatishil Padmavati Purval Digambar Jain Sangathan Panjikrut
Publication Year2005
Total Pages449
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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