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________________ साहित्यिक जागरूकता-विद्यार्थी जीवन से ही गद्य-पद्य दोनों में लिखने की प्रवृत्ति जागी और विद्यालय से निकलने के बाद 4 वर्ष तक हस्तलिखित पत्रिका 'सिद्धान्त चन्द्रिका' का सम्पादन किया। ‘मार्तण्ड' तथा 'बालकेशरी' पत्र का प्रकाशन किया। आप आर्ष आगमवादी परम्परा के पोषक रहे। तत्संबंध में आपने सामाजिक मंचों से अपने लेखों व पत्रिकाओं के माध्यम से काफी प्रचार-प्रसार किया। आचार्यवर श्री शांतिसागर जी महाराज के समक्ष आप सिद्धक्षेत्र गजपंथा में पंचकल्याणक प्रतिष्ठा के अवसर पर शास्त्र प्रवचन हेतु गद्दी से जब प्रश्नों का समाधान दे रहे थे तो आचार्यश्री ने आपको ‘पंडित' होने का आशीर्वाद दिया। 4 सितम्बर 1989 को आपका निधन हो गया। श्री लाला केशवदेवजी, कायथा जिला आगरा स्व. लालाजी में राष्ट्रीयता कूट-कूट कर भरी हुई थी। मण्डल कांग्रेस कमेटी नारखी की मीटिंगों में आपकी राय का विशेष महत्व होता था। ग्राम सभा कायथा के प्रधान के पद पर रहकर पुलिया, पीने के कुएं, सिंचाई के कुएं, वृक्षारोपण, स्कूल आदि निर्माण कार्यों में दसियों वर्षों तक पूरा समय दिया। जैन अतिशय क्षेत्र कमेटी मरसलगंज के अध्यक्ष रहकर इस संस्था द्वारा वृक्षारोपण आदि राष्ट्रीय महत्व के कार्यों में योगदान दिया। स्व. ब्र. पडित खूबचन्दजी सिद्धान्त शास्त्री आपका जन्म बेरनी में हुआ था। स्व. न्यायवाचस्पति पं. गोपालदास जी वरैया के प्रमुख शिष्यों में से थे। सिद्धान्त, न्याय एवं साहित्य आदि सभी विषयों के चूड़ान्त विद्वान थे। वर्षों भा. दि. जैन महासभा के मुख पत्र 'जैन गजट' के सम्पादक रहे। आप इन्दौर रहकर सर सेठ हुकमचन्द जी • पद्मावतीपुरवाल दिगम्बर जैन जाति का उद्भव और विकास 92
SR No.010135
Book TitlePadmavati Purval Digambar Jain Jati ka Udbhav aur Vikas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjit Jain
PublisherPragatishil Padmavati Purval Digambar Jain Sangathan Panjikrut
Publication Year2005
Total Pages449
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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