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________________ सन् 1918 ई. में ब्र. ज्ञानचन्द की प्रेरणा से 'मानव जीवन की सफलता' पर निबन्ध लिखा था। प्रतिमा पूजन आपका विद्यार्थी जीवन में लिखा गया वह पहला निबन्ध था जो पद्मावती पुरवाल (कलकत्ता) में प्रकाशित हुआ। भा.दि. जैन संघ के मुख पत्र जैन दर्शन का सम्पादन व प्रकाशन किया। जैन गजट का 1950 से 1968 तक सम्पादन किया। सन् 1966 से शांतिवीर नगर, महावीर के श्रेयमार्ग पत्र का भी सम्पादन किया। आपने एक बहुत बड़ी संख्या में पुस्तकें लिखीं जिनमें सत्यार्थदर्पण, सत्पथ दर्पण, जैन धर्म परिचय, अनेकान्त परिचय, दैनिक जीवन चर्या, स्वास्थ्य विज्ञान के नाम उल्लेखनीय हैं। आपने कुछ ऐसे भी ग्रन्थ लिखे जिनपर नाम नहीं दिया। आपने पत्रों के माध्यम से लगभग सौ फर्मों का मैटर लिखा। आपने 130 छात्रों और 30 छात्राओं को पढ़ाया। आप अवैतनिक रूप से पढ़ाने के पक्ष में थे। पर समाज के आग्रह से नाम मात्र का पारिश्रमिक लेते थे। आपने सन् 1947 से ब्रह्मचर्य व्रत ले लिया था। पंडित जी का जीवन चरित्र आज भी प्रेरणादायक बना है। कुछ विशेषताएं थीं-1. आगरा के कुली ने सारा सामान इधर-उधर का ठग लिया था, पर आप अमृतसर के कुली को पैसे देने के लिए तीन बार मुल्तान से अमृतसर गये। 2. जब सच्चा कलावत्तू खरीदने वाला मुसलमान 137/- रुपयों वाला बटुआ भूल गया तथा आपने उसकी खोज कराई और बटुआ सौंप दिया। 3. आपने एक से अधिक संस्थाओं की सेवा की थी। 4. आप एक से अधिक वर्षों तक शास्त्री परिषद के मंत्री रहे। __ अन्य व्यक्ति को कष्ट न देकर, दुष्ट व्यक्ति के सामने नहीं झुकते हुए, सज्जनों के मार्ग पर चलते हुए, आर्थिक लाभ थोड़ा हो तो वह भी बहुत समझना चाहिए के सिद्धान्त को पालने करने वाले व्यक्तित्व वाले थे पंडित जी। संक्षेप मे पंडित जी अपूर्व अध्यवसायी, सहृदय व्यक्ति थे। वे सही अर्थ में मानव थे। पद्मावतीपुरवाल दिगम्बर जैन जाति का उद्भव और विकास
SR No.010135
Book TitlePadmavati Purval Digambar Jain Jati ka Udbhav aur Vikas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjit Jain
PublisherPragatishil Padmavati Purval Digambar Jain Sangathan Panjikrut
Publication Year2005
Total Pages449
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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