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________________ 94 / महामन्त्र णमोकार . एक वैज्ञानिक अन्वेषण पचपरमेष्ठियो के क्रम-निर्धारण में वैज्ञानिकता की भी अदभत गजायश है। सीधे क्रम की वैज्ञानिकता है कि श्वेतवर्ण सब वर्णों का प्रतिनिधित्व करता है। दूसरी ओर अन्तिम परमेष्ठी से प्रथम परमेष्ठी तक श्याम से श्वेत बनने तक की पूरी प्रक्रिया को भी समझा ही जा सकता है। उत्तरोत्तर आत्मा को विकसित अवस्था को देखा जा सकता है । वास्तव मे यह क्रम वास्तविक और व्यवहारिक दोनो धरातलो पर खरा उतरता है। महामन्त्र मे अन्त स्यूत रगो के माध्यम से आत्म-साक्षात्कार की प्रक्रिया का खुलासा इस प्रकार है कि हम सर्वप्रथम मन्त्र के प्रति अपनी मनोभूमि तैयार करते है। दूसरे सोपान पर हम उसका (मन्त्र का) जाप, मनन एव उच्चारण करते है। उच्चारण या मनन से हमारे सम्पूर्ण शरीर एव मन मे एक अद्भुत आभामण्डल अथवा भावालोक पैदा होता है। उच्चरित ध्वनिया मूलाधार से आरम्भ होकर समस्त चक्रो में व्याप्त होकर एक नाद का रूप लेती है। वह नाद सघन होकर एक आभा मे प्रकाश में बदल जाता है। यह प्रकाश सारे चैतन्य मे व्याप्त हो जाता है। घनीभूत प्रकाश अपनी अभिव्यक्ति के लिए विवश होकर आकृति मे बदलता है और आकृति रग मे होगी ही। आशय स्पष्ट है कि ध्वनि से आकृति (रग) तक की प्रक्रिया में ही मन्त्र अपनी पूर्ण सार्थकता मे उभरता है। इस बात को हम इस प्रकार भी कह सकते है कि ध्वनि अपनी पूर्ण अवस्था मे आकृति या रग मे ढलकर ही सम्पूर्णतया सार्थक होती है। इसे हम ध्वनि विश्लेषण की प्रक्रिया भी कह सकते हैं या रग विज्ञान की पूर्वावस्था का आकलन भी कह सकते है। आपके शरीर मे आपका जो मल स्थान है जिसे हम ब्रह्मयोनि या कडलिनी कहते है, वही से ऊर्जा का पहला स्पन्दन प्रारम्भ होता है। ध्वनि का विकास कैसे होता है, ध्वनि मे नाद का जन्म कैसे होता है, किसको हम बिन्दु, नाद और कला कहते हैं। उन्ही कलाओ से मन्त्र का विकास, काम का विकास होता है और शरीर के अन्दर चय, उपचय, स्वास्थ्य का ह्रास या वृद्धि भी वही से होती है। एक विशिष्ट अक्षर एक विशिष्ट तत्त्व का ही प्रतिनिधित्व क्यो करता है ? बात यह है कि प्रत्येक अक्षर एक आकृति से बधा हुआ है। प्रत्येक ध्वनि एक विशिष्ट
SR No.010134
Book TitleNavkar Mahamantra Vaigyanik Anveshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Jain, Kusum Jain
PublisherKeladevi Sumtiprasad Trust
Publication Year1993
Total Pages165
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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