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________________ णमोकार मन्त्र और रग विज्ञान | 93 गया है, उसे अन्य चार परमेष्ठियों की वर्णाभा प्राप्त करना अत्यन्त सहज होगा। सभी परमेष्ठियो के रंगो के अनुसार हम अपना चतुर्दिक वातावरण बनाकर भी सिद्धि कर सकते है। हमे अपने शरीर, मन और सम्पूर्ण जीवन के लिए जिस शक्ति की आवश्यकता है, उसी के अनुरूप हमे आवश्यक पद का जाप करना होगा। समस्त मन्त्र का पाठ तो अद्वितीय फल देता ही है, परन्तु आवश्यकता के अनुरूप एक पद का जाप या मनन भी किया जा सकता है। समस्त मन्त्र के जाप मे श्वेत वर्ण के वस्त्र, श्वेतवर्ण की माला आदि से सर्वाधिक लाभ होगा। मनस्तृप्ति होगी। द्वितीय श्रेष्ठ वर्ण है नीला । मल सात रगो मे से तीन रग नीलपरिवार के हैं । इन्द्र-धनुष के रगो से यह तथ्य प्रमाणित है ही। हमारे शास्त्रों में भी चौबीस तीर्थकारों के रग वर्णित है। रंग निहित शक्ति का द्योतक होता है। ऋषम, अजित, सभव, अभिनन्दन, सुमति, शीतल, पार्श्व, श्रेयास, विमल, अनत, धर्म, शान्ति, कुथु, अरह, मल्लि, नमि, महावीर के वर्ण सुवर्ण (तप्त स्वर्ण-कुन्दन जैसे) माने गये हैं पद्म एव वासुपूज्य का लाल वर्ण माना गया है । चन्द्र प्रभु एव पुष्पदन्त के श्वेतवर्ण स्वीकृत है, मुनिसुव्रत एवं नेमि के श्यामवर्ण हैं। पार्श्वनाथ का नील श्यामवर्ण हैं। हमारे समस्त शरीर मे मूल सातो रग हमारी कोशिकाओं में व्याप्त हैं-सचित है। ये सभी शरीर को सक्रिय और स्वस्थ रखने में अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। यदि इनमे से एक रग की भी कमी हो जाए तो शरीर का क्रियाक्रम भग होने लगता है। रगों की कमी की पूर्ति हम दवा से करते है। मन्त्र मे रगो का भण्डार है जिससे हम शरीर के स्तर पर ही नही आत्मा के स्तर पर भी लाभान्वित हो सकते हैं। णमोकार महामन्त्र मे परमेष्ठियो का सामान्यतया समान महत्त्व है। परन्तु शास्त्रो मे क्रम निर्धारित किया गया है। इस मन्त्र में भी कभी-कभी हम क्रम के आधार पर छोटे-बड़े का निर्णय करने की नादानी करने लगते हैं। वास्तव मे ये सभी परमेष्ठी त्रिकाल-दष्टि से देखने पर समान महत्त्व के हैं। वर्तमान काल मात्र देखने से भ्रम पैदा होता है।
SR No.010134
Book TitleNavkar Mahamantra Vaigyanik Anveshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Jain, Kusum Jain
PublisherKeladevi Sumtiprasad Trust
Publication Year1993
Total Pages165
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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