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________________ 90 / महामन्त्र णमोकार एक वैज्ञानिक अन्वेषण 5 पुप्पराग या पुखराज नीला बृहस्पति विशुद्ध 6 हीरा जामुनी शुक्र स्वाधिष्ठान 7 नीलम आममानी शनि अनाहत ये सात प्रमुख एवं प्रतिनिधि रत्न शाश्वत रूप से सृष्टि को सात रंगो वाली किरणे प्रदान करते है। इन्ही सात रगो को हम इन्द्र-धनुप मे देखते है। इन्ही सात किरणो या रगों की सृष्टि की रचना, रक्षा और विनाश की स्थिति है। नक्षत्रो के समान उक्त सात पवित्र रत्न उक्त सात इन्द्रधनुषी रगो के ही सघन या सक्षिप्त रूप है। इन रत्नों के विषय में कुछ मूलभूत बाते ये है। 1 सबसे पहली बात यह है कि ये रत्न सदा अपना एक शुद्ध रग ही _रखते है और वहभी बहुत अधिक मात्रा में रखते है। इनमे मिश्रणों की सभावना नहीं है। 2 ये सभी रत्न अत्यधिक चमकीले होते हैं और अपनी रगीन किरण को सदा प्रकट करते है। 3 ये रत्न अल्कोहल, स्पिरिट और पानी में डाले जाने पर अपनी किरणो का प्रकाश विकीर्ण करते है। इनमें न्यूनता या थकान नहीं आती। 4. इनके रंगो की विश्वसनीयता के लिए निकोना शीशा (Prism) भी उपयोग में लाया जाता है। णमोकार महामन्त्र मे अन्तनिहित रगो का अपना विशेष महत्त्व है। अर्थ के स्तर पर, ध्वनि के स्तर पर और साधना (योग) के स्तर पर इस महामन्त्र को समझने का या इसमे उतरने का प्रयत्न किया जाता रहा है और इस दिशा मे भारी मफलता भी प्राप्त हुई है । रग-विज्ञान या रग-चिकित्सा का भी एक विशिष्ट एव व्यापक धरातल है। इसके आधार पर अन्य आधागे को भी एक निश्चित कोणो मे रखकर समझा जा सकता है । पाचो परमेष्ठियो का एक सुनिश्चित प्रतीक रग है। अरिहत परमेष्ठी का श्वेतवर्ण, सिद्ध परमेष्ठी का लाल वर्ण, आचार्य परमेष्ठी का पीला वर्ण, उपाध्याय परमेष्ठी का नील वर्ण तथा माधु
SR No.010134
Book TitleNavkar Mahamantra Vaigyanik Anveshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Jain, Kusum Jain
PublisherKeladevi Sumtiprasad Trust
Publication Year1993
Total Pages165
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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