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________________ णमोकार मन्त्र और रंग विज्ञान | 89 4 विद्युत ताप प्रकाश यन्त्र-बदली के दिनों में और रात के समय प्रकाश स्नान के लिए यह यन्त्र उपयोगी है। सफेद रग के अर्क लैम्प के कारण यह यन्त्र सूर्य जैसा ही प्रकाश देता है। रग आदि की आवश्यकता के अनुसार बल्ब बदल लिये जाते है। 5 पारद वाष्प लेम्प : (Quartz mercury vapour Lamp)स्पेक्ट्रम के विभिन्न रंगो मे इन्फ्रारेड और अल्ट्रा वायलेट किरणों का अपना विशेष महत्त्व है। इन्हे उक्त यन्त्र की सहायता से ही प्राप्त किया जा सकता है। सूजन और रक्ताधिक्य के रोगों मे ये किरणे महौषध का काम करती हैं। आयुर्वेद और रंग आयुर्वेद का आधार वात, पित्त और कफ हैं। इनके आधार पर गो को इस प्रकार रखा गया है-1. कफ का आसमानी रग, 2. वात का पीला रग 3 पित्त का लाल रग, किस रंग के अभाव से क्या होता है, यह जानने के लिए ध्यातव्य यह है कि प्रमुख और सर्वथा मौलिक दो रग ही हैं-लाल और आसमानी (नीला)। रगों की अधिकता भी हानिकारक है। सुस्ती, अधिक निद्रा, भूख की कमी, कब्ज पतले दस्त शरीर मे लाल रंग की कमी के कारण आते हैं। रक्त का रंग लाल है ही। आसमानी के अभाव में क्रोध, झुझनाहट, सुस्ती, अधिक निद्रा और प्रमाद की स्थिति बनती है। रत्न विज्ञान (रत्न-चिकित्सा) (Gem therapy) रग विज्ञान अथवा रग चिकित्सा में इन्द्र धनुष का सर्वोपरि महत्व है । परन्तु इन्द्र धनुष के रगों को सीधा उससे ही तोप्राप्त करना सम्भव नही है। अत: सूर्य-किरण द्वारा, चन्द्र-किरण द्वारा एवं रत्न-रग या किरण द्वारायह कार्य किया जाता है। प्रसिद्ध सात रत्नो के नाम, रग, ग्रह और चक्र इस प्रकार हैं : वर्ण 1. लाल लाल मूलाधार 2. मोती नारगी चन्द्र सहस्रार 3. मूगा मगल आज्ञा 4 पन्ना हरा बध मणिपुर पीला
SR No.010134
Book TitleNavkar Mahamantra Vaigyanik Anveshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Jain, Kusum Jain
PublisherKeladevi Sumtiprasad Trust
Publication Year1993
Total Pages165
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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