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________________ 76 / महामन्त्र णमोकार एक वैज्ञानिक अन्वेषण ही अरिहंताण पद के पाठ की पूर्ण पात्रता प्राप्त करता है। अ+रि+ हं+ता+ण-पद के सभी मातृका वर्ण क्रमश अविनश्वर–व्यापकज्ञानरूप, शक्तिमय-गत्यर्थक, पुप्टिदायक, लक्ष्मी जनक, सिद्धिदायक एव ध्वसक बीजो के स्फोटक है। वायु, आकाश और अग्नि तत्त्वों की गरिमा से युक्त है। ध्वनि तरंग के स्तर पर 'अ' ध्वनि कण्ठ से उद्भूत होकर 'रि' से मर्धावर्ती अमततत्त्व प्राप्त कर 'ह' के द्वारा पुनः कण्ठस्थ होता है। और 'ता' द्वारा वायुतत्त्व और दन्त स्थल को घेरती हुई अन्तत 'ण' के उच्चारण के साथ पुन. मर्धा-अमत मे प्रवेश कर जाती है। स्पष्ट है कि 'णमो अरिहताण' पर ध्वनि के स्तर पर भक्त या पाठक मे शक्ति, सिद्धि एव अमृत तत्त्व (आत्मा की अमरता) का अनुपम सचार करता है। भक्त अपार श्वेत-आभा मण्डल से परिव्याप्त हो जाता है। उसे अपने इर्द-गिर्द सर्वत्र एक निरभ्र, निर्मल श्वेताभा के दर्शन होने लगते है। वह अपनी आत्मा मे अरिहन्त का साक्षात्कार करने की स्थिति में आ जाता है। उसका भीतर-बाहर कोई शत्रु नही रह जाता है। वह अजात शत्रु हो जाता है। यह ध्वनि त रग का स्फोटात्मक प्रभाव ही है। णमो सिद्धाणं: णमो पद की ध्वनिपरक-व्याख्या की जा चुकी है। सि-- णमो अरिहताण पद के उच्चारण के पश्चात भक्त या पाठक मे पर्याप्त सामर्थ्य का सचार हो जाता है। जब वह सिद्धाण की 'सि' वर्ण-मातका उच्चारण करता है तो उसमें इच्छापूर्ति, पौष्टिकता और आवरण नाशक शक्तियो का संचार होता है। यह दन्त्य ध्वनि है। समस्त चक्रो को पार करती हुई यह ध्वनि जब मुख विवर से प्रकट होगी आहत नाद का रूप धारण करती है। तब अद्भुत रक्त आभा मण्डल से भक्त घिर जाता है। हा- 'द्ध' यह सयुक्त मातृका भी दन्त्य ध्वनि तरगमय है । अत. उक्त आहत ध्वनि तरग अतिशय शक्तिशाली प्रभाव उत्पन्न करती है। जल तत्त्न तथा भमि तत्त्वो की प्रधानता के कारण स्थिरता मे वृद्धि होगी। चतुवर्ग फल प्राप्ति का योग होगा।
SR No.010134
Book TitleNavkar Mahamantra Vaigyanik Anveshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Jain, Kusum Jain
PublisherKeladevi Sumtiprasad Trust
Publication Year1993
Total Pages165
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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