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________________ वैज्ञानिक शब्द से मेग आशय विज्ञानपरक न होकर अधिक मात्रा में क्रमबद्ध, तर्कसगत एव सप्रमाण होना रहा है। हा, जो भी सम्भव हो सका है, मैने वैज्ञानिक मान्यताओ का भी आश्रय लिया है। इस पुस्तक को इस दिशा मे मैं अपना प्रथम प्रयास मानता हूँ । मैं समय रहते इस पुस्तक मे सकेतित बिन्दुओ पर विस्तार से काम करूगा। यह कृति प्राप्त कृतियो के साथ रहकर भी अपनी अस्मिता रखती है। णमोकार मन्त्र विश्वजनीन अनाद्यनन्त मन्त्र है। यह मन्त्र समार का सस्कार कर उसे अध्यात्म में परिवर्तित करने की अद्वितीय क्षमता रखता है। ध्वनिसिद्धान्त, रग-चिकित्सा, मणि-विज्ञान एव ध्यान और योग के धरातल पर यह मन्त्र क्या कहता है, क्या द्योषित करता है और कहा ठहरता है, सुधी वन्द देखें, समझे। __ मन्त्र-शक्ति और उसकी महत्ता पर भी स्वतन्त्र चर्चा है, अक्षरश विवेचन है, परखें। एक किचिज्ञ कुछ भी दावा तो नही कर सकता, परन्तु ईमानदारी का माश्वासन तो दे ही सकता है। एक बात और-धामिक उच्चता या आध्यात्मिक पराकाष्ठा सामान्य मानक मस्तिष्क की पकड से परे होने के कारण आश्चर्य या चमत्कार कही जाती है, यह किसी धर्म की अनिवार्यता है, अन्यथा वह धर्म नहीं होगा। पूर्णतया जागत मूलाधार शक्ति का सहज शब्द-उद्रेक मन्त्र होता है। आभार इस पुस्तक के कुछ लेख 'तीर्थकर' पत्रिका मे सन् 1985-86 में प्रकाशित हए और फिर 'णाणसायर' पत्रिका ने सभी लेखो को क्रमश प्रकाशित किया। श्री मेघराज जी तैजस शक्ति सम्पन्न हैं, बडी लगन से आपने पुस्तक छापी है । आपको शुद्ध हृदय से साधुवाद समर्पित करता है। महाकवि कालीदास के शब्दो मे में केवल इतना ही इगित करना चाहता हू-"आ परितोषात् विदुषां, न साधमन्ये प्रयोग विज्ञानम् ।" भवदीय 13, शक्तिनगर, पल्लववरम्, मद्रास रवीन्द्र कुमार जैन
SR No.010134
Book TitleNavkar Mahamantra Vaigyanik Anveshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Jain, Kusum Jain
PublisherKeladevi Sumtiprasad Trust
Publication Year1993
Total Pages165
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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