SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 7
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पुरोवाक् अध्यात्म का अर्थ है आत्मा के विषय मे सोचना, चर्चा करना और उसमें उतरना । मानव इस विराट जगत मे क्रमश. अधिकाधिक उलझता चला जाता है और अपनी भीतरी चैतन्य शक्ति से पराइ मुख होता चला जाता है। वह सुखो का स्वामी न बनकर दास बन जाता है और एक गहरी रिक्तता का अनुभव करता है। इसी रिक्तता के कारण वह जन्म-जन्मान्तर में भटकता रहता है। वह दुनिया का स्वामी होकर भी स्वय से अपरिचित रहता है। अपने ही घर मे विदेशी हो जाता है। इसी रुग्णता, रिक्तता और नासमझी का उपचार महामन्त्र णमोकार करता है और आत्मा को ससार मे कैसे रहकर अपने परम लक्ष्य को कैसे प्राप्त करना है, यह सहज ज्ञान देता है । मन्त्र का अर्थ है-मन की दुर्गति से रक्षा करने बाला, मन की तृप्ति और मन का आस्फालन। स्पष्ट है कि स्वय भी आत्मशक्ति से परिचित होने के लिए मात्पशक्तिप्राप्ति के उत्कृष्ट उदाहरण पवपरमेष्ठी की शरण इस महामन्त्र से ही सम्भव हो सकती है। विशद रूप मे निज की सकल्पशक्ति, इच्छाशक्ति और मानसिक ऊर्जा के विकास के लिए इस मन्त्र की साधना के अनेक रूप अपनाए जाते हैं। यह महामन्त्र मूलत' अध्यात्मपरक है, परन्तु इसके माध्यम से सासारिक नियमन एव सन्तुलन भी प्राप्त किया जा साता है। अत सिद्धि और भान्तरिक व्यक्तित्व का साक्षात्कार ये दो रूप इस मन्त्र से प्रकट होते हैं। वस्तुत: सिदि तो इससे अनायास होती है, बस निजस्वरूप की प्राप्ति के लिए विशिष्ट साधना अपेक्षित होती है इसी सिद्धि और आन्तरिकता के आधार पर इस मन्त्र के दो रूप बनते हैं। पूर्ण नवकार मन्त्र सिद्धिबोधक है और मूल पचपदी मन्त्र अध्यात्म बोधक है। मासारिकता रहित समार अपनी सहजता मे स्वय छूट जाता है। जीवन की अनिवार्यता मे हम ससार मे रहते तो है ही। अत हमे उसको नियन्त्रित करना ही होगा। प्रस्तुत कृति वस्तुत मेरे सेवावकाश से लगभग 2 वर्ष पूर्व मेरे मानसक्षितिज पर उभरी थी। मैंने पढ़ा, सोचा और अनुभव किया कि णमोकार मन्त्र अनन्त पारलौकिक, लोकिक एव बाध्यात्मिक शक्तियो का अक्षय भण्डार है, इस पर कुछ वैज्ञानिक दाट मे विचार करना अधिक समीचीन एव श्रेयस्कर होगा।
SR No.010134
Book TitleNavkar Mahamantra Vaigyanik Anveshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Jain, Kusum Jain
PublisherKeladevi Sumtiprasad Trust
Publication Year1993
Total Pages165
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy