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________________ महामन्त्र भमोकार और ध्वनि विज्ञान / 73 और उनसे उत्पन्न होने वाले भावो का अनुभव कर रंगों को पहचानती थी। लाल रंग की वस्तु को छूने पर उसे गरमाहट का अनुभव होता था । वह बता देती थी कि वह लाल रंग को छू रही है। हरे रंग का स्पर्श करने पर उसे प्रसन्नता का अनुभव होता था और वह हरे रंग को पहचान लेती थी । नीली वस्तु को छूने पर उसे ऊचाई का अनुभव होता था और वह नीले रंग को पहचान लेती थी । मन्त्र और इससे उत्पन्न होने वाले रम हमारे आन्तरिक जगत् के ह्रास और विकास में महत्त्वपूर्ण योग देते है । सामान्य वाणी और मन्त्र वाणी 1 समस्त वर्ण माला का और उससे बने शब्दों और वाक्यों का नामान्यतया सभी उपयोग करते है । अपने दैनिक जीवन की आवश्यकताओ मे, प्रेम मे, क्रोध मे, सुख मे, दुख मे वे ही ध्वनिया उच्चरित होती हैं। परन्तु ऐसे सभी शब्द मन्त्र नही कहे जा सकते। इनसे लोकोत्तर ऊर्जा और प्रभाव को भी पैदा नही किया जा सकता । वे शब्द या शब्द समूह ही मन्त्र है जिनकी शक्ति को पुन: पुन पवित्र साधना और मनन के द्वारा जगाया गया है। इस शक्ति जागरण की प्रक्रिया में केवल शब्द की ही शक्ति नही जगती है परन्तु साधक की पवित्र और तन्मय आत्मा की शक्ति भी जगती है । अत मन्त्रित शब्द जोकि मन्त्र बन गये है उनमे पुरातनप्रयोक्ताओ ने अपार शक्ति भी अपनी साधना से सचरित की है । यह हम आज जगाना चाहे तो हमे अपनी पात्रता पर भी एक दृष्टि डालनी होगी । हृदय और मन की पवित्रता, साधना की एकाग्रता और निरहङ्कार तथा नि स्वार्थ आचरण मन्त्र पाठ की पूर्ववर्ती शर्तें हैं। ह हलो बीजानि चौक्तानि स्वराः शक्तय ईरिताः ॥ 366 ॥ ककार से हकार पर्यन्त के व्यजन बीज रूप हैं और अकारादि स्वर शक्ति रूप है । मन्त्र बीजों की निप्पत्ति बीज और शक्ति के संयोग से होती है । अतः सामान्य वाणी की तुलना मे मन्त्र-वाणी अत्यधिक शक्तिशालिनी एवं प्रभावोत्पादक होती है। फिर मन्त्र प्रयत्न करके ही रचे जाते, ये तो अनायास ही सहज वाणी के रूप में किसी परम
SR No.010134
Book TitleNavkar Mahamantra Vaigyanik Anveshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Jain, Kusum Jain
PublisherKeladevi Sumtiprasad Trust
Publication Year1993
Total Pages165
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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