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________________ 62 महामन्त्र णमोकार : एक वैज्ञानिक अन्वेषण भोजन नलिका, मुख विवर, नासिका विवर) चारों ओर जाते हैं। नासिका विवर और मुखविवर के मुहाने पर एक छोटा-सा मांस खण्ड है, वही अलि जिह्वा या छोटी जीभ कहलाता है। अलि जिह्वा कोमल तालु का अन्तिम भाग है। कोमल ताल-मर्धा के अन्त का अस्थिमय अश जहा कोमल मांस खण्ड प्रारम्भ होता है, कोमल तालु कहलाता है जब मुख विवर से वायु भीतर की ओर ली जाती है तो कोमल तालु ऊपर उठ जाता है। किन्तु जब वायु नासिका विवर से निकलती है तब कोमल ताल नीचे की ओर झुक जाता है। कोमल तालु मुखविवर और नामिका विवर के बीच एक कपाट का काम करता है। मूर्धा-कठोर तालु और कोमल तालु के बीच का भाग मूर्धा है। यह उच्चारण स्थलन है। कठोर तालु-वयं के अन्तिम भाग से लेकर मर्धा के आरम्भ तक का भाग कठोर तालु कहलाता है। मर्धा की भाति यह भी उच्चारण स्थान है, उच्चारण सहायक नही । तालव्य कही जाने वाली ध्वनियो का यही स्थान है। वयं-ऊपर के दातो के मूल से कठोर ताल के आरम्भ तक का भाग वयं कहलाता है । यह उच्चारण स्थान-अवयव है। दात-दानो की ऊपर की पक्ति के सामने वाले या ठीक मध्य के दात ही ध्वनि उत्पादन मे विशेष सहायता देते है। ये दात नीचे के ओप्ठ एव जिह्वा की नोक मे मिलकर ध्वनियां उत्पन्न करने में सहायक होते है। जिह्वा-मुख विवर (ध्वनियन्त्र) मे जिह्वा सबसे अधिक महत्वपूर्ण है। जिह्वा उच्चारण अवयवो मे सबसे प्रमुख है। यही कारण है कि अनेक भाषाओ मे जिह्वा के पर्यायवाची शब्द भापा के पर्याय बन गये है। द्रष्टव्य है सस्कृत-वाक्, वाणी (वागिन्द्रय) फारसी-जवान अग्रेजी-टग, स्पीच (मदर टग) फेच-लाग, लगाज
SR No.010134
Book TitleNavkar Mahamantra Vaigyanik Anveshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Jain, Kusum Jain
PublisherKeladevi Sumtiprasad Trust
Publication Year1993
Total Pages165
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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