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________________ 18 / महामन्त्र णमोकार : एक वैज्ञानिक अन्वेषण "सम्यकदर्शनज्ञानचारित्राणिमोक्षमार्ग" अर्थात् सम्यकदर्शन, सम्यक्ज्ञान और सम्यक्चारित्र्य का एकीकृत्त त्रिक ही मोक्षमार्ग है-धर्म है। __ मानन मात्र मे भावना के दो स्तर होते है। ऐन्द्रिक सुखों की ओर आकृष्ट करने वाले भाव-हीन भाव कहलाते है। इनमे तात्कालिक आकर्पण और प्रत्यक्ष सुख झलकता है/मिलता है अत. मानव इनसे प्रभावित होकर इनका अनुचर बन जाता है । दूसरे भाव आत्मिक स्तर के उच्च भाव है । इनमे त्वरित सुख नहीं है। धीरे-धीरे इनमे से स्थायी मुख प्राप्त होता है। ये भाव है--अहिसा, दया, क्षमा, वात्सल्य, त्याग, तप, मयम एव परसेवा। उच्च स्तरीय भावो मे प्रवत्ति कम ही होती है। ज्यो-ज्यो ससार मे भोग, विलास की सामग्री का अम्बार जटता है, त्यों-त्यो मानव की लौकिक प्रवत्ति भी बढती जाती है। आज गत युगो की तुलना में हमारी सभ्यता (भौतिक जिजीविषा) बहुत अधिक विकसित हो चुकी है। अनाज उत्पादन, शस्त्र निर्माण, औद्योगिक विकाम, चिकित्सा विज्ञान, यातायात के साधन, दूरदर्शन आदि के आविष्कारो ने आज के मानव को इतना सुविधाजीवी बना दिया है, इतना सासारिक और पगु बना दिया है कि बस वह एक यन्त्र का अश मात्र बनकर रह गया है। वह जीवन के, नये मूल्य बना नहीं पाया है और पुराने मूल्यों को हीन और अनुण्योगी समझकर छोड़ चुका है । वह विशकू की तरह अनिश्चितता मे लटक रहा है। दो विश्व युद्धों ने उसके जीवन में अनास्था, निराशा और अनिश्चितता भर दी है। वह अज्ञात और अनिर्दिष्ट दिशाओ मे भागा चला जा रहा है। आशय यह है कि आज का मानव जीवन मल्यों एव आध्यात्मिक मल्यों की असगति और अनिश्चितता से बड़ी तेजी से गुजर रहा है। इस प्रसग मे महाकवि भर्तृहरि का एक प्रसिद्ध पद्य उदाहरणीय है "अज्ञः सुखमाराध्यः, सुखतर माराध्यते विशेषज्ञः । ज्ञान लव दुर्विदग्धं, ब्रह्मापि नरं न रउजयति ॥" नीतिशतक-3 अर्थात मुर्ख व्यक्ति को सरलता से समझाया जा सकता है, विशेषज्ञ को संकेत मात्र से समझाया जा सकता है, किन्तु जो अर्धज्ञानी है उसे ब्रह्मा भी नही समझा सकते हैं। स्पष्ट है कि आधनिक मानव ततीय विश्वयुद्ध के ज्वालामुखी पर बैठा हुआ है। कभी-किसी क्षण में वह
SR No.010134
Book TitleNavkar Mahamantra Vaigyanik Anveshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Jain, Kusum Jain
PublisherKeladevi Sumtiprasad Trust
Publication Year1993
Total Pages165
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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