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________________ 150 / महामन्त्र णमोकार : एक वैज्ञानिक अन्वेषण ___ अजन प्रभाव में आ गया और हार चराने के लिए अंजन (मंत्रित अजन) लगाकर रात मे निकल पड़ा। हार चुराने मे वह मफल हो गया। परन्तु रास्ते में दो बाते प्रतिकूल बन पड़ी। एक तो हार की ज्योति बाहर चमक उठी और शुक्ल पक्ष के कारण, अ जन भी किचित्कर हो गया। और अंजन चोर भी प्रकट रूप से पहरेदारो को दिख गया। पहरेदारो ने पीछा किया। चोर भाग कर समीपवर्ती ३ शान मे एक वृक्ष के नीचे शरण खोजता हआ पहचा। उसने ऊपर देखा। वहाँ 108 रस्सियो का एक जाल लटक रहा था। नीच विविध प्रकार के (32 प्रकार के) शूल, कृपाण, बरछी, भाला आदि शस्त्र ऊर्ध्वमुखी होकर गाडे गये थे। एक व्यक्ति वहाँ णमोकार मन्त्र का जाप करता हुआ क्रमश एक-एक रस्सी काटता जाता था। परन्तु उसका चित्त घबराहट से भरा हुआ था, वह कभी ऊपर चढता तो कभी नीवे उतरता था। अजन चोर ने उससे पूछा, भाई, तुम यह क्या कर रहे हो? उसने कहा मैं मन्त्र द्वारा आकाश-गामिनी विद्या सिद्ध कर रहा हूँ। अंजन चोर यह सुनकर हसने लगा और बोला, आप तो डरपोक हैं, आपका विश्वास भी कमजोर है, आपको विद्या सिद्ध नही हो सकती। आप मन मुझे बता दीजिए मैं सिद्ध करूगा। मुझे मरने का भी डर नहीं है। मै यदि मरूँ भी तो अच्छे कार्य में ही मरना चाहता हूँ। तब वारिषेण नाम के उस डरपोक साधक ने अजन चोर को णमोकार मन्त्र बताया और मन्त्र सिद्धि की विधि भी बतायी। बस अंजन चोर ने पूरी श्रद्धा के साथ निर्भय होकर मन्त्र पाठ किया और एक-एक आवृत्ति पर एक-एक रस्सी काटता गया। अन्त में 108वी रस्सी कटते ही, वह नीचे गिरे, इसके पूर्व ही, आकाश गामिनी विद्या ने प्रकट होकर उसे (अजन चोर को) कार उठा लिया। अजन चोर को विद्या ने नमस्कार किया और कहा, मै आपसे प्रसन्न ह, आपके हर सत्कार्य में सहायता करूगी। अजन चोर को इस घटना से ऐसी लोकोत्तर मानसिक-शान्ति मिली कि बस उसने तुरन्त सुमेरू पर्वत पर पहुचकर दीक्षा ली और कठिन तपश्चर्या करके अष्टकर्मों का नाश किया तथा मोक्ष प्राप्त किया-अर्थात समस्त संमार के बन्धनो से मुक्त होकर आत्मा की निर्मलतम स्थिति को प्राप्त किया।
SR No.010134
Book TitleNavkar Mahamantra Vaigyanik Anveshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Jain, Kusum Jain
PublisherKeladevi Sumtiprasad Trust
Publication Year1993
Total Pages165
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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