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________________ णमोकार मन्त्र का माहात्म्य एवं प्रभाव / 149 अंजन चोर को कथा - दिगम्बर आम्नाय के कथा ग्रन्थों मे अजन चोर की कथा बहुत प्रसिद्ध है। महामन्त्र की महिमा ने एक अत्यन्त पतित व्यक्ति को किस प्रकार जीवन की महानता तक पहुँचाया-यह बात इस कथा द्वारा बडी प्रभाविकता से व्यक्त की गयी है। ललितांग देव जो अत्यन्त व्यभिचारी चोर और हिंसक प्रवृत्ति का व्यक्ति था, वही बाद मे अजन चोर के रूप में प्रसिद्ध हुआ। यह चोर कर्म मे इतना निपुण था कि लोगो के देखते-देखते ही उनकी वस्तुओं का अपहरण कर लेता था। यह स्वय मुन्दर और बली भी था। इसका राजगृही नगरी की प्रधान नर्तकी-वेश्या से (मणिकांचना से) अपार प्रेम था। अजन चोर अपनो इस प्रेमिका पर इतना अधिक आसक्त था कि उसके एक सकेत पर अपने प्राण भी दे सकता था-कुछ अतिमानवीय अथवा अन्यायपूर्ण कार्य करने को तैयार था। ठोक ही है-विषयासक्त व्यक्ति का सब कुछ नष्ट होता ही है। "विषयासक्त चिसानां गुणः को वा न नश्यति । न दुष्यं न मानुष्यं नाभिजात्यं न सत्यवाक्॥" अर्थात विषयासवत व्यक्ति का कौन-सा ऐसा गुण है जो नष्ट नही हो जाता, सब कुछ नष्ट हो जाता है। वैदुष्य, मनुष्यता, कुलीनता तथा सत्यवादिता आदि सभी गण नष्ट हो जाते है। एक दिन मणिकाचना ने अजन चोर से कहा, प्राणवल्लभ, प्रजापाल महाराज की रानी कनकवती के गले में ज्योतिप्रभा नामक हार आज मैंने देखा है। मैं उसे किसी भी कीमत पर चाहती है। आप उसे लाकर मुझे दीजिए। मैं उसके बिना जीवित नहीं रह सकती। अजन चोर ने प्रेमिका को समझाया कि दो-चार दिन मे वह उक्त हार ला देगा। उसे कृष्ण पक्ष की विद्यासिद्ध है-उसका अजन कृष्ण पक्ष में ही काम करता है, अभी शुक्ल पक्ष समाप्ति पर है। थोडी-सी प्रतीक्षा कर लो। प्रेमिका ने अजनप्रेमी से कहा, मैं बस प्राण ही त्याग दूगी। यही मेरे और आपके प्रेम की परीक्षा है। आप तुरन्त हार ला दे, अन्यथा कल मैं जीवित न रहगी।
SR No.010134
Book TitleNavkar Mahamantra Vaigyanik Anveshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Jain, Kusum Jain
PublisherKeladevi Sumtiprasad Trust
Publication Year1993
Total Pages165
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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