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________________ 134 / महामन्त्र णमोकार एक वैज्ञानिक अन्वेषण अरिहन्त को पहले और सिद्ध को बाद में पठित किया गया है। दूसरे विभाग में भी यही क्रम है। आचाय और उपाध्याय की अपेक्षा मुनि का (माधु का) स्थान ऊत्रा है, क्योकि गुगस्थान आरोहण मुनिपद से ही होता है, आचार्य और उपाध्याय पद में नहीं। यही कारण है कि अन्तिम समय में आचार्य और उपाध्याय को अपना-अपना पद छोडकर मुनिपद धारण करना पड़ता है। मुक्ति भी मुनिपद से ही होती है तथा रत्नत्रय की पूर्णता इमो पद में सम्भव है। अतः दोनो विभागो मे उन्नत आत्माओ को पश्चात् पठिन किया गया विचार करने पर यह समाधान उतना ही विश्वसनीय एवं नर्काश्रित नही लगता जितना कि यह तर्क कि परमेष्ठियो के वर्तमान पदक्रम मे लोकोपकार भाव को अग्रिमता के कारण ही मौजूदा क्रम अपनाया गया है। आत्मकल्याण और लोकोपकार को दष्टि में रखकर यह क्रम अपनाया गया है। बात यह है कि वर्तमान क्रम की सार्थकता, महत्ता अ र औचित्य मे कोई-न-कोई ठोस कारण जो विश्वसनीय हो, होना ही चाहिए। महामन्त्र णमोकार और मातृकाओ का सम्बन्ध वर्णमातृका के स्वरूप और महत्त्व पर सक्षेप में इत पूर्व इगित किया जा चुका है। अक्षर, वर्ण एव शब्द रूप मे मातृका शक्ति का विस्तार है। हमारे समस्त जीवन मे यह शक्ति कार्य करती है। जब नक हम इसे जानते नहीं हैं और सकल्पपूर्वक इसका प्रयोग नहीं करते हैं. तब तक अनुकूल फल सम्भव नही होता है। णमोकार महामन्त्र मे समस्त मातृका शक्ति का प्रयोग हुआ है। अन्य किसी भी मन मे यह बात नहीं है। यह इस महामन्त्र को अद्भुत विशेषता है। इससे भी इस मन्त्र का लोकोत्तरत्व सिद्ध होता है। पदक्रम के अनुसार मातृका विश्लेषण - • मगलमन्त्र णमोकार-पृ. 56
SR No.010134
Book TitleNavkar Mahamantra Vaigyanik Anveshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Jain, Kusum Jain
PublisherKeladevi Sumtiprasad Trust
Publication Year1993
Total Pages165
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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