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________________ महामन्त्र water वर्य, व्याख्या (पदमानुसार ) / 125 यात्मक निर्विकल्पता को प्राप्त करना चाहता है। वह सिद्ध परमेष्ठी से उनके दर्शन, गुणानुवाद एव पूर्णनमन से ही प्राप्त हो सकती है । निर्विकार और परम शान्त अवस्था प्राप्त करने के लिए णमो सिद्धाण का ध्यान एव जाप अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है । णमो अरिहत र्ण मे श्वेत रंग के साथ तीन भाव से ध्यान किया जाता है । इससे हमारी मानसिक स्वच्छता और आन्तरिक शक्तियो का उन्नयन होता है । णमो सिद्धाण सिद्ध परमेष्ठी के ध्यान बीर जाप के समय, लाल रग के साथ हम सहज ही जुड जाते हैं। सिद्ध परमेष्ठी के नमन के समय हमारे मानस पटल पर वह चित्र उभरना चाहिए जबकि सिद्ध परमेष्ठी अष्टकर्मों का दहृन कर निर्मल रक्तवण कुन्दन की भाति दैदीप्यमान हो उठते हैं । हमारे शरीर में रक्त की कमी हो अथवा रक्त मे दोष मा गया हो तो णमो सिद्धाण का पंचाक्षरी जाप करना वांछनीय है । णमो सिद्धाण' का ध्यान दर्शन केन्द्र मे रक्त वर्ण के साथ किया जाता है। बाल सूर्य जैसा लाल वर्ण । दर्शन केन्द्र बहुत ही महत्त्वपूर्ण चैतन्य केन्द्र है। लाल वर्ण हमारी आन्तरिक दृष्टि को जागृत करने वाला है । इस रंग की यही विशेषता है कि वह सक्रियता पैदा करता है। कभी सुस्ती या आलस्य का अनुभव हो, जडता आ जाए तो दर्शन केन्द्र मे दस मिनट तक लाल रंग का ध्यान करे। ऐसा अनुभव होगा वि स्फूर्ति आ गयी है । "" विशुद्ध दृष्टि से सिद्ध परमेष्ठी ही पंचपरमेष्ठियो मे श्रेष्ठतम हैं और प्रथम पद के अधिकारी हैं । प्रस्तुत मन्त्र मे विवक्षा भेद से या ससारी जीवो के प्रत्यक्ष और सीधे लाभ तथा उपदेश प्राप्ति आदि की दृष्टि से ही अरिहन्त परमेष्ठी का प्रथम स्मरण किया गया है । स्पष्ट है कि अरिहन्तो को भी अन्तत सिद्ध अवस्था प्राप्त करना ही है । सिद्ध या सिद्धावस्था तो अरिहन्तो द्वारा भी वन्दय है। वास्तव में सिद्ध परमेष्ठी पूर्ववर्ती चार परमेष्ठियो की अवस्थाए पार कर चुके है और अन्य परमेष्ठियो से गुणात्मक धरातल पर आगे है। अन्य परमेष्ठियों को अभी सिद्ध अबस्था प्राप्त करना है । अत सिद्ध परमेष्ठी मात्र का वन्दन नमन, चिन्तन, स्मरण पंचपरमेष्ठी - वन्दन ही है । फिर भी पूरे मन्त्र के जप, ध्यान एव भाष्य अवश्य ही विशेष फलदायी 1 "एसो पच णमोकारो"- -प० 78 यवाचार्य महाप्रज्ञ
SR No.010134
Book TitleNavkar Mahamantra Vaigyanik Anveshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Jain, Kusum Jain
PublisherKeladevi Sumtiprasad Trust
Publication Year1993
Total Pages165
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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