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________________ रुपसुंदरी. ६५ हारे पोतानो जाहेर करेलो निश्चय अमलमां मुकवा माटे आज क्षणे अहींथी चालता थवुं जोईए. फरीथी तुं कोईपण जग्याए लोकवस्तीमां अटक्यो किंवा व्हारो पश्चाताप खोटो छे एम अमने जणाई आवे, तो हने उनी कल्पना पण थशे नहीं, एवी भयंकर शिक्षा व्हारे भोगववी पडशे ! " अभयकुमारनुं आ भाषण सांभळतांज देवदत्तने घणुं लागी अव्युं अने तेवज स्थितिमा हेमना पगपर मस्तक मुक्की, एक सरखो अश्रुवर्षाव करवा लाग्यो. हमेशना माटे लेना मनपर एटलुं विलक्षण परिणाम धनुं के, व्हेने ते न्यायाधीश न लागतां साक्षात् ईश्वरज भासवा लाग्या. पछी पोतानुं मस्तक उठावी लई रुपसुंदरी तरफ वळ्यो अने तेणीना पगपर मस्तक मुकी बोल्यो:-" भगिनी ! आ पतीत बंधु त्हारी साथ जे नीचपणाथी वर्तन कयुँ, ते बदल अतःकरणपूर्वक त्हारी क्षमा मांगे छे ! त्यारे ते सर्व अपराध सिरी जई आ दयासागर न्यायमूर्तिप्रमाणे तुं पण क्षमा कर. व्हेन ! आ अधमने पोताना कृत्यकर्मनो पश्चाताप थवामां, म्हारा सर्व नीच मनोविकार शांत बनवामां किंबहुना म्हारु सर्वस्व परिवर्तन थवामां त्हारोज अचळ सद्गुणप्रेम कारणभूत थयो, माटे हुं जन्मजन्मांतरे पण व्हारोज ऋणी रहीश ! " आ वखते ज्छेनी आंखमांथी अश्रुबिंदु नकिळ्या नहीं होय, एवा मनुष्य त्यां भाग्येज हशे ! रुपसुंदरीए ने अंतःकरणपूर्वक क्षमा करतांज ते त्यांथी नोकळी पडयो.
SR No.010133
Book TitleMahavir Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMotilal Hirachand Gandhi
PublisherMotilal Hirachand Gandhi
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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