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________________ दिगंबर जैन. परंतु जे वात एकने दुःखप्रद थई तेज बीजाने अत्यंत आनंदकारक दीसवा लागी आ रीतथी रहेने एटलो हर्ष थयो के, व्हेना मनमां ' हवे रुपसुंदरी म्हारी, हवे रुपसुंदरी म्हारी ' एम बोलता बोलतां नाचवा लाग्यो. ५२ रहेनुं प्रत्यक्ष नृत्य जो के दरबारना माणसाने देखायुं नहीं परंतु व्हेना उपरना विजय दर्शक उद्गार सर्वेना सांभळवामां आव्या. खरो प्रकार शुं छे ते आ प्रमाणे बहार पड्यो. वास्तविक रीते जोईए तो आज वखते आ मामलानो निकाल करवाने अभयकुमारने बिल्कुल हरकत नहोती, कारणके ते प्रमाणेज दरबारमां इतर चाणाक्ष लोकोने पण रुपसुंदरीनो खरो पति कोण छे ते हवे स्पष्ट समजातुं हतुं, परंतु पोताना न्यायमांथी सत्यनो प्रकाश तद्दन मूढ माणसना हृदय पर पडे, एवीज अभयकुमारनी हमेशनी न्याय करवानी पद्धति होवाथी आ. वखते पण तेमणे विलंब कर्यो. आ प्रमाणे थोडो वखत गयो नहीं एटलामां तेज ओरडीमांथी बाकाना रस्ते ते बे पैकी एक जण एकदम बहार आव्यो ! आ विलक्षण प्रकार जोतांज सघळी सभा क्षणभर आश्चर्यमा चक्क थई गई, पण ते साथेज रुपसुंदरीनो खरो पति कोण अने कई अलौकिक सामर्थ्यथी व्हेनुं आबेहुब रुप लेनार हरामखोर कोण ? ते त्यां भेगा थयलां मनुष्योना लक्षमां आववाने विलंब थयो नहीं.
SR No.010133
Book TitleMahavir Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMotilal Hirachand Gandhi
PublisherMotilal Hirachand Gandhi
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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