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________________ दिगंबर जैन. तेज ओरडीनुं बारणं खखइयुं. बारणुं खखडतांज ते जागृत अने जुए छे तो पोताना पतिने समक्ष उभो थयेलो जोयो. आटलं कहेवा छतां पण सांभळ्युं नहीं अने हवे पोतानी मेळेज पाछा आववानुं केम थयुं एनुं तेणीने मोटुं आश्चर्य लाग्यं, तथापि रहेने जोतांज तेणी गाभरी थई उभी रही अने बोली : ४२ " अधवचमांज पाछा आववानुं थयुं ! केम कंई भूली गया के शुं ? निकळती वखते म्हने जे कमकमी थती हती ते निष्फळ नहोती ! " "छे छे, भूली तो कईए गयो नथी. तुं मिथ्या : व्हीश नहीं ! " " त्यारे पछी म्हें केटलुंए क्युं, ते सांभळ्युं नहीं अने हवे केम पाछु आववानुं थयुं ! " द्वारा माटे ! " एटले ? " " कह्युं एमांज समजी ले ! व्हने आ करतां स्पष्ट शुं कहे वुं ! अरेरे! बहुज वासना ? " एटलं बोली ते खूब मोटेथी हस्यो. (6 रहेना आ इसवाथी अने उपरनां कामवासनायुक्त वचनोथी रुपसुंदरी एकदम चमकी ! भने तेणीने कांई संशय आववा लाग्यो ! तेणीनी आ साशंकवृत्ति जोई व्हणे एकदम लेणीनो हाथ पकड्यो अनेक :
SR No.010133
Book TitleMahavir Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMotilal Hirachand Gandhi
PublisherMotilal Hirachand Gandhi
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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