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________________ २४ दिगंबर जैन. केवळ द्वारा मनोबळपर अने शीलरक्षणना निश्चयपर अवलंबी रहे लुं छे. जो आ बन्ने निश्चय दृढ हशे तो ना तरफथी कांइ पण रहने अडचण थशे नहीं अने ते एटला दृढ राखवानुं सामर्थ्य हारामां शुं पण प्रत्येक माणसना आत्मामां छे." " त्यारे महाराज, म्हारे पतिनो त्याग करवो पडशे शुं ? " "नहीं, रुपसुंदरी ! त्हारे आ व्रत पाळवा पति त्यागवानी जरुर नथी. संसारविरक्त साधु-साध्वीनेज पत्नि पति संबंधीनो त्याग करवानी आवश्यकता छे, परंतु शीळवतनी बाबतमां संसारी जीवोने आ कडक नियम लागु नथी. संसारी जीवोने स्वस्त्री-पुरुषपांज संतोष मानवो, एज शीत्रत छे. त्यारे रुपसुंदरी, जो त्हारे असह्य दुःखना स्थान जेवा नर्कमांथी हजु पण नीक ळवानी इच्छा होय तो आज वखते ते व्रत ग्रहण कर अने मरण पर्यंत निश्वयथी पाळ. " रुपसुंदरीनो निश्चय क्यारनो थई गयो हतो, फक्त ते हेमना आशीर्वादात्मक प्रोत्साह माटेज कांई थोडो वखत थोभी हती. हेमनुं बोलवं बंध थतांज तेणीए उभा रही हेमना पग उपर हाथ टेक्यो अने बोली : “भो ! परम करुणामय साधुवर्य ! आपना आ परमबंध, परमनिर्मळ अने पतीतजनसंरक्षक चरणपर हाथ मूकी अरज करूं छं के हवे पछी आ रुपसुंदरी, केबो पण प्रसंग आबे,
SR No.010133
Book TitleMahavir Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMotilal Hirachand Gandhi
PublisherMotilal Hirachand Gandhi
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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