SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 240
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ दिगंबर जैन. अने तेमना पग उपर अविरत अश्रुजळना प्रवाहनो अभिषेक करवा लागी! आ वखते तेणीनो कंठ एकदम भराई आवेलो होवाथी कांई पण बोलायुं नहीं, तथापि ते टूटता गदगद कंठे बोली: " महाराज, आ पापिणीने पोतानां करेलां कर्मनो अत्यंत पश्चाताप हवे थाय छे अने आपनी कृपाथी एकदम साफ थयेली म्हारी दृष्टिथी म्हारे स्वरूप अत्यंत मलीन देखाय छे ! महाराज, कहो आ रुपसुंदरीना-नहि पापिणीना उद्धारनो कोई रस्तो ! नर्कमा डबेला आ कीडाने उपर आववानी काई आशा छ शुं ? कहो, कहो ! महाराज, म्हारा हृदयने आ वखते काइ कांई थई रघु छे ! "रुपसुंदरी, शांत था " मुनि अत्यंत गंभीरताथी बोल्या, " रहने जो पोताना कृतकर्मोनो खरेखरो पश्चाताप थतो हशे अने हवे पछी आ पापथी अलिप्त रहे वानो जो त्हारो खरोज निश्चय थयो हशे तो हारा उद्धारनी हजु पण आशा छे अने ते मार्ग हुं हने बतायूँ छु." " अहाहा! महाराज, आ चांडाळणी प्रत्ये पण आपनी आटली अनुकंपा ! खचित साधुवर्य, आप साक्षात् इश्वररूप छो" एक दीर्घ निश्वास मूकी रुपसुंदरी बोली. “ एक विषधर प्राणी समान सर्व जगत् जेनो तिरस्कार करे छे अने महा
SR No.010133
Book TitleMahavir Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMotilal Hirachand Gandhi
PublisherMotilal Hirachand Gandhi
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy