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________________ सह लेते हैं । परन्तु गृहस्थों से हम इस प्रकार के व्यवहार की आशा नही कर सकते। जो व्यक्ति हम पर अत्याचार कर रहा है या हमें कष्ट पहुचा रहा है उसका अभिप्राय एक न्यायाधीश के समान हमको दंड देने का नही होता, वह तो अपनी स्वार्थपूर्ण इच्छाए पूरी करने के लिए हम पर, हमारे परिवार पर, हमारे आश्रितो पर, हमारे समाज पर तथा हमारे देश पर आक्रमण करता है और हमारी महिलाओ की बेइज्जती करता है। यदि उसको ऐसा करने से रोका न गया और वह अपने कुकृत्यो मे सफल हो गया तो उसका दु साहस और भी बढ जायेगा और फिर वह केवल हमको, व हमारे परिवार को ही नहीं वरन हमारे धर्म, हमारी संस्कृति, हमारे समाज और हमारे देश को भी नष्ट कर देगा । हमको तो उसका विरोध करना ही चाहिये । हा, हमारी सफलता और असफलता हमारे द्वारा पूर्व मे किये हुए कर्मों और वर्तमान मे किये हुए हमारे प्रयत्नो, दोनो पर निर्भर करती है । कुछ व्यक्ति यह आक्षेप करते है कि अहिसा व्यक्ति को कायर बनाती है । परन्तु यह आरोप भी निराधार है। ऊपर के विवेचन से स्पष्ट हो जाता है कि अहिंसा धर्म मे कायरता को कोई स्थान नही है । अहिंसा अन्याय व अत्याचार करने से रोकती है, किन्तु यह कभी नही कहती कि तुम किसी अन्य का अत्याचार सहन करो। एक निडर व्यक्ति ही सच्ची अहिंसा का पालन कर सकता है और जहा निडरता है वहा कायरता को कोई स्थान नही होता । जो व्यक्ति अपने विपक्षी को सामने देखकर उसका सामना करने के बजाय वहां से हट जाता है, चाहे वह मुंह से अहिंसा की रट लगाता रहे, वह अहिसक नहीं कायर है । et
SR No.010132
Book TitleMahavir aur Unki Ahimsa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Radio and Electric Mart
PublisherPrem Radio and Electric Mart
Publication Year1974
Total Pages179
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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