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________________ इसके साथ-साथ हमें अपनी आवश्यकताओं को भी सीमित रखना चाहिए और उन्हे यथासंभव घटाते रहना चाहिए। जितनी हमारी आवश्यकताए कम होगी, उतनी ही उनके लिए भाग दौड कम होगी और फलस्वरूप हिंसा होने की सम्भावना भी कम होगी। आवश्यकताए कम करने का अर्थ यह नहीं है कि हम निठल्ले बैठे रहें, अपितु आवश्यकताए कम करने का अभिप्राय अपनी तृष्णा और अपनी लोभवृत्ति, अपनी जिह्वा की स्वाद-लिप्सा व बेकार का दिखावा कम करने से है। हमको अपना बचा हवा समय दूसरो का उपकार करने, पठन-पाठन और चिन्तन व मनन करने में लगाना चाहिए। हिंसा और अहिंसा में अन्तर हम पहले ही कह आए हैं कि हिंसा और अहिंसा का हमारे हृदय की भावनाओ से गहरा सम्बन्ध है। बहुत से कार्य ऐसे होते है कि जिनको देखने से यह लगता है कि ये हिंसा के कार्य हैं, परन्तु वहाँ हिंसा नही होती या बहुत कम होती है। दूसरी ओर कुछ ऐसे कार्य हैं जो देखने मे हिसायुक्त नही लगते, परन्तु वे हिसा की श्रेणी में आते हैं। कुछ उदाहरणो से यह तथ्य बिल्कुल स्पष्ट हो जायेगा। एक शल्य चिकित्सक एक रोगी की शल्य-क्रिया कर रहा है। चिकित्सक को अपने विषय का पूर्ण ज्ञान व अभ्यास है। वह बहुत सावधानीपूर्वक अपना कार्य कर रहा है और उसकी यही भावना है कि रोगी स्वस्थ हो जाए। इतना सब होने पर भी रोगी की मृत्यु हो जाती है। साधारण रूप से देखने पर शल्य-क्रिया के कारण रोगी को कष्ट होने तथा उसकी मृत्यु होने से यह कार्य हिसा का
SR No.010132
Book TitleMahavir aur Unki Ahimsa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Radio and Electric Mart
PublisherPrem Radio and Electric Mart
Publication Year1974
Total Pages179
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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