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________________ रखता हो तो हमे उससे द्वेष नही रखना चाहिए, अपितु उसके विचारो को शान्ति और धैर्यपूर्वक सुनना व समझना चाहिए और अपने विचार भी उसको शान्ति से समझाने चाहिए । यह सम्भव है कि वह ठीक हो और हम ही भ्रम हो । एक बात और है । प्रत्येक वस्तु मे भिन्न-भिन्न अपेक्षा से बहुत से गुण होते हैं । उनमे से कुछ गुण एक-दूसरे के विरोधी भी होते हैं। जैसे राम अपने पिता की अपेक्षा से पुत्र है और अपने पुत्र की अपेक्षा से पिता है । इस प्रकार राम एक समय मे ही पिता भी है और पुत्र भी है । पाच इच की एक रेखा तीन इच की रेखा से बडी है, परन्तु वही पाच इच की रेखा सात इच की रेखा से छोटी है । इस प्रकार वह पाच इच की रेखा एक ही समय मे छोटी भी है और ast भी । यदि कोई व्यक्ति यह हठ करने लगे कि राम केवल पिता ही है और रेखा केवल छोटी ही है तो यह उसका दुराग्रह ही कहा जायगा । इस सम्बन्ध मे एक हाथी और छ नेत्रहीनो की कहानी भी विचारणीय है। जिस नेत्रहीन ने हाथी के कान को छुआ था वह हाथी को पंखे के समान ही मानता था । जिस नेत्रहीन ने हाथी के पाव को छुआ था वह उसको एक स्तम्भ के समान ही मानता था। इस प्रकार हाथी के सम्बन्ध मे प्रत्येक नेत्रहीन की, उसके अपने द्वारा छुए हुए अग के अनुसार अलग-अलग मान्यता थी, जबकि वास्तव मे हाथी उन सब नेत्रहीनो की मान्यताओ को एक साथ मिलाकर देखने पर ही बनता था । हमको यह भी नही भूलना चाहिए कि हम भी उन नेत्रहीनों के समान अल्पज्ञ हैं । हम भी वस्तु को पूर्ण रूप से न जानकर केवल उसका थोडा सा भाग ही जानते है । इसलिए ७३
SR No.010132
Book TitleMahavir aur Unki Ahimsa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Radio and Electric Mart
PublisherPrem Radio and Electric Mart
Publication Year1974
Total Pages179
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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