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________________ ast है कि यदि उसमें तोनों लोकों की सम्पदा भी डाल दी जाये तो भी वह खाली ही रहता है। यह जन साधारण के अनुभव की बात है कि धनसम्पदा तो भाग्य से मिलती है। यदि आपके भाग्य में धन है तो वह अच्छे साधनो के द्वारा भी मिलेगा। यदि भाग्य मे धन नही है तो आप कितने ही अनुचित कार्य क्यो न कर लें आप निर्धन ही रहेंगे। हाँ, अनुचित कार्य करके अपने सिर पर पाप का बोझ अवश्य बढा लेंगे । इसका यह अर्थ नही कि हम भाग्य के भरोसे हाथ पर हाथ रखकर निठल्ले बैठ जायें। इसके विपरीत मनुष्य को सदैव ही पुरुषार्थ करते रहना चाहिये, पर उसके साघन समुचित हो, इसका बराबर ध्यान रखना चाहिए। समुचित साधनो द्वारा किये गये पुरुषार्थ का फल देर या सबेर अवश्य ही अच्छा मिलेगा । एक बात और है । हमारा सबका मुख्य लक्ष्य सुखशान्ति से जीवन व्यतीत करना है । क्या धन-सम्पदा से हमे सुख और शान्ति प्राप्त हो सकती है ? घन से कुछ आरामदायक साधन अवश्य खरीदे जा सकते हैं, परन्तु सुख-शान्ति नही । आज भी कितने ऐसे धनवान है, जिनको सच्चा सुख और शान्ति नसीब है बहुत से व्यक्तियो की यह आदत होती है कि वे दूसरों की देखा-देखी अनावश्यक वस्तुएँ जैसे कपड़े, जूते, फरनीचर आदि इकट्ठी करते रहते हैं । ऐसा करने में कुछ व्यक्तियो के पास तो वे वस्तुएँ फ़ालतू पडी रहती हैं, जबकि हजारों दूसरे व्यक्ति उनके अभाव में बहुत कठिनाई में जीवन बिताते हैं। फ़रनीचर आदि की सफ़ाई करने में सूक्ष्म जीवों की हत्या भी होती है। यदि आप भाग्यशाली हैं और धनवान 要等
SR No.010132
Book TitleMahavir aur Unki Ahimsa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Radio and Electric Mart
PublisherPrem Radio and Electric Mart
Publication Year1974
Total Pages179
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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