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________________ सकता है। इन नौ मे से किसी एक प्रकार से भी कार्य करने पर हम उस कार्य के कर्ता होने के उत्तरदायित्व तथा उसके अच्छे व बुरे फल से बच नही सकते। (२) विरोधी हिसा :-किसी आक्रमणकारी से अपनी, अपने परिवार और अपने आश्रितो की तथा अपने धन, धर्म, समाज और देश की रक्षा करते हुए, जो हिंसा हो जाती है, वह विरोधी हिंसा कहलाती है। __ यहाँ पर “हो जाती है" पद का विशेष महत्व है। सकल्पी हिसा "की जाती है" अर्थात् जान-बूझकर, योजना बनाकर की जाती है, किन्तु विरोधी हिसा "हो जाती है", अर्थात् किसो आक्रमणकारी से अपनी सुरक्षा करते हुए अचानक और कभी-कभी मजबूरी से हो जाती है। परन्तु आक्रमणकारी का प्रतिकार करते हुए हमारे मन मे केवल अपनी सुरक्षा करने की भावना ही होनी चाहिए, उसे किसी प्रकार का कष्ट देने, अनुचित रूप से सताने या उससे बदला लेने की भावना नहीं। (३) आरम्भी हिंसा -प्रत्येक व्यक्ति को गृहस्थ मे रहते हुए बहुत से ऐसे कार्य करने ही पड़ते हैं जिनमे हिंसा हो जाना अनिवार्य है । जैसे, घर की सफाई करना, भोजन बनाना, खाद्य पदार्थों को साफ करना, कपडे धोना, मकान वनवाना इत्यादि । इन कार्यों से जो हिंसा हो जाती है उसको आरम्भी हिसा कहते है । यहाँ पर भी हिंसा "हो जाती है," की नहीं जाती। इस प्रकार की हिंसा से बचने के लिए यह आवश्यक है कि हम जो भी कार्य करे बहुत सावधानी से करे। अपने मन मे सदैव यही भावना रखे कि मेरे द्वारा किसी भी जीव को किसी भी प्रकार का कष्ट न पहुँचे। हम अपनी आवश्यकताओ को यथा सम्भव कम करते रहें, ५२
SR No.010132
Book TitleMahavir aur Unki Ahimsa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Radio and Electric Mart
PublisherPrem Radio and Electric Mart
Publication Year1974
Total Pages179
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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