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________________ और अनुपात से होता तो मोटे-ताजे व्यक्ति मे ज्ञान अधिक होता और दुबले-पतले व्यक्ति मे कम होता। परन्तु यह बात जनसाधारण के अनुभव के विपरीत है। कुछ व्यक्ति बहुत मोटे ताजे व पहलवान होते हैं, परन्तु वे बहुत ही मन्द बुद्धि होते हैं, जबकि कुछ व्यक्ति दुबले-पतले व निर्बल होते हैं, परन्तु वे बहुत ही कुशाग्र बुद्धि होते हैं। इस प्रकार जब हम भिन्न-भिन्न व्यक्तियो मे ज्ञान की न्यूनता व अधिकता देखते हैं तो यह असम्भव नही दीखता कि किसी व्यक्ति में ज्ञान की सम्पूर्णता भी हो। इसलिए हम कह सकते हैं कि भगवान महावीर का सर्वज्ञ होना असम्भव नहीं है। वास्तव मे ससार के प्रत्येक जीव मे सर्वज्ञ होने की शक्ति है, परन्तु उसकी इस शक्ति पर कर्मों का आवरण पड़ा हुआ है। किसी प्राणी को शक्ति पर यह आवरण अधिक गाढ़ा है और किसी पर कम गाढा । इसी कारण से प्रत्येक व्यक्ति के ज्ञान मे भिन्नता होती है। जैसे-जैसे यह कर्मों का बावरण हल्का होता जाता है उस व्यक्ति को ज्ञान शक्ति अधिक विकसित दिखाई देती है। जिस व्यक्ति की शक्ति पर से यह कर्मों का आवरण बिल्कुल हट जाता है वही सम्पूर्ण ज्ञानी हो जाता है। व्यक्ति के ज्ञान की तुलना हम सूर्य के प्रकाश से और कर्मों की तुलना बादलो से कर सकते हैं। सूर्य का प्रकाश तो सदैव ही सम्पूर्ण तथा एक-सा रहता है, परन्तु हमारे सामने आकाश में बादल आ जाने के कारण ही हमको वह प्रकास पूरा नही मिल पाता। जैसे-जैसे बादलों का आवरण हल्का होता जाता है, सूर्य का प्रकाश तीव्र होता जाता है। जब बादल बिल्कुल हट जाते हैं तब हम सूर्य का पूर्ण प्रकाश पा लेते हैं। सूर्य के प्रकाश में जो
SR No.010132
Book TitleMahavir aur Unki Ahimsa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Radio and Electric Mart
PublisherPrem Radio and Electric Mart
Publication Year1974
Total Pages179
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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