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________________ भी लिया था। इस प्रकार हम देखते हैं कि भगवान महावीर ने जो मार्ग दिखलाया था, वह केवल उनके अपने शाश्वत सुख के लिये ही नहीं था, अपितु वह तो ससार के प्रत्येक प्राणी को सच्चा, निर्बाध व अनन्त सुख प्राप्त कराने वाला था। उनकी धर्म सभा मे, केवल विशिष्ट व्यक्तियों या केवल मनुष्यो के लिए ही नहीं, अपितु समस्त पशु पक्षियो के लिए भी समुचित स्थान था। प्रत्येक जाति के पशु-पक्षी भी उनकी धर्म सभा मे आकर शाति का अनुभव करते थे । ऐसी परिस्थितियो में उनके द्वारा दिखलाये हुए मार्ग मे मनुष्यो मे ऊँच और नीच का भेद उठने का तो प्रश्न ही नही उठता । ससार के प्रत्येक प्राणी को अनन्त व सच्चा सुख प्राप्ति के समान अवसर प्रदान करने के कारण ही उनकी धर्म सभा समवशरण-जहाँ पर प्रत्येक प्राणी को किसी भी भेदभाव के बिना समान रूप से शरण मिल सके–कहलाती थी। उन्होने मनुष्यो की उच्चता व नीचता, उनके जन्म व वेश से न मानकर उनके कर्मों से मानी थी। उनका कहना था कि सिर मुंडा लेने से कोई श्रमण नहीं बन जाता, केवल ओकार का जप करने से कोई ब्राह्मण नही बन जाता, निर्जन वन मे रहने मात्र से ही कोई मुनि नही बन जाता और केवल वल्कल वस्त्र पहनने से कोई तपस्वी नहीं हो जाता। इसके विपरीत समता पालने से श्रमण, ब्रह्मचर्य का पालन करने से ब्राह्मण, चिन्तन, मनन व ज्ञान से मुनि तथा तपस्या करने से तपस्वी होता है। (उत्तराध्ययन, २५/३१-३२) एक आवर्श नेता भगवान महावीर राजपुत्र थे। उनके नाना व अन्य
SR No.010132
Book TitleMahavir aur Unki Ahimsa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Radio and Electric Mart
PublisherPrem Radio and Electric Mart
Publication Year1974
Total Pages179
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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