SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 98
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ६४] प्राचीन जैन स्मारक। इस जैन कांचीमें ही श्री समन्तभद्राचार्यका जन्म हुआ था जो द्वि० शताब्दीमें बड़े भारी नैय्यायिक व दार्शनिक होगए हैं| स्वयंभूस्तोत्र, रत्नकरण्ड, आप्तमीमांसा आदि ग्रन्थोंके कर्ता है देखो-आराधना कथाकोष ब्र० नेमिदत्तकृत । इहैव दक्षिणस्थायां कांच्यां पुर्या परात्मवित् । मुनिः समन्तभद्राख्यो विख्यातो भुवनत्रये ॥२॥ (३) Seven pagodas सात मंदिर-ता० चिंगलपुट । मदरास शहरसे दक्षिण ३५ मील । इस स्थानको महावलीपुर, महावल्लीपुर, भावल्लीपुर, मामल्लपुर या मल्लापुर कहते हैं। यहां बहुत प्रसिद्ध कारीगरी है। ग्रामके दक्षिण ९ मंदिर बौद्धोंके हैं । ये गुफाओंके मंदिर छठी या सातवीं शताब्दीके एलोरा और एलिफैन्टाके समान है। दो मंदिर विष्णु और शिवके थे जो समुद्रसे वह गए हैं। शिलालेखोंसे प्रगट है कि उत्तरसे चालुक्योंने आकर कांचीके पल्लवोंको जीता । यह स्थान ईष्ट कोष्ट नहर और समुद्र के बीचमें है। यहां गुफाएं भी हैं । यह पहाड़ी १५०० फुट लम्बी है । इसको राजबली कहते हैं । यहां १४ वा १५ रिपियोंके ध्यानकी गुफाएं हैं। बड़ी शांतिका स्थान है। यह निःसंदेह जैनियोंकी कारीगरी है। (is no doubt work of Jains) हैदराबादमें एक जैन गुरु महेन्द्रमन्तके पाप्त एक ताम्रपत्र है उसमें लिखा है “ राजा अमर जिसका नाम परमेश्वर और विक्रमादित्य पल्लव मल्ल था उसको श्री वल्लमने दबा दिया । यह श्री वल्लम कांचीका राजा हुआनाम राजमल्ल प्रसिद्ध हुआ। इसने महामल्ल जातिके स्वामीको सन् ६२० में जीत लिया।
SR No.010131
Book TitleMadras aur Maisur Prant ke Prachin Jain Smarak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages373
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy