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________________ मदरास व मैसूर मान्त। (४) जगतमें ऐश्वर्यकी वृद्धि हो। रानोंका राजा कृष्णदेव महारानके राज्यमें जिसने युद्ध में विजय प्राप्त की थी, शालिवाहन वर्ष १४४० में वर्ष वहमनिया थनु मासमें सप्तम रविवारको पुष्प नक्ष में तेरुपरुत्तिकुनरमके मंदिरके पुजारीको श्रीजिन मूर्तिकी नित्यपूजाके लिये एक घर २०० फुट चौड़ा बेचा गया जो अवयन पुकनके घरके पूर्वमें व नदीके उत्तर गलीके दक्षिण में है। इसमें नदीके तटपर टीला व वृक्षादि शामिल हैं। (१) कोल डुंगचोलम्के ४५ वें वर्षके राज्यमें यह आज्ञा दी गई कि ग्राममें पानी मंदिरके लिये लिवा जासक्ता है । (६) हरिहर राजाके पुत्र श्री मौवुख रानाने त्रिलोकवल्लभ तिरुपत्तिकुनरमके पुनारीको भामन्दरके निकट महेन्द्रमंगलम् ग्राम भेट किया। जो आमदनी हो वह मंदिर जीर्णोद्धार व नित्य पूजामें लगे। (७) कोलयुंगचोलम् रानाके २० वें राज्यवर्षमें वियवदुकन नामके जैन ब्राह्मणने, जिसकी उपाधि त्यागू समुद्रप्पत्तयेर थी व जिसकी, उदारता समुद्र समान गंभीर थी एक मंडप बनवाया । मदरास एपिग्राफीके दफ्तरमें यहां के नीचे प्रमाण नकशे हैं(१) नं० सी २७ वर्द्धमानस्वामी के मंदिरका दक्षिण पूर्वीय भाग (२) नं० सी २८ , दक्षिणी भाग(३) नं० सी २९ त्रैलोक्यनाथ मंदिरका उत्तर पूर्वीय भाग (४) नं० सी ३० , , का पूर्वीय भाग (१) नं० ८३८, (सन् १९२४) एक जैन मूर्ति कंनीवरम्के एक प्राइवेट बागमें है उसका फोटो ।
SR No.010131
Book TitleMadras aur Maisur Prant ke Prachin Jain Smarak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages373
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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