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________________ मदरास व मसूर मान्त । ४३ हजारा रामस्वामीके मंदिरके दो ध्वंश द्वार हैं जो देखने योग्य हैं। यह राजाओंकी पूजा करनेका एकान्त स्थान था । इसको कृष्णदेवरायने सन् १९९३ में प्रारंभ किया था | आंगनके भीतर बाहरी दिवालों पर कई मूर्तियां अंकित हैं उनमें जैन मूर्तियां भी हैं। यहां जो दरबारका कमरा है. उसके पश्चिम हाथीका अस्तबल है । इसके पूर्व खेतों में दो छोटे जैन मंदिर हैं जो ध्वंश हो गए हैं 1 पम्पापती मंदिरके नीचे और उसके उत्तर नगरमें सबसे बड़ा जैन मंदिरोंका समूह है । उनके शिखर देखने योग्य हैं । कदलईकल्लु गणेश के सामने सड़ककी दूसरी तरफ एक और जैन मंदिर है । पम्पापति मंदिर के गोपीपुरम् के उत्तरसे कुछ उत्तर दो और जैन मंदिर हैं । हम्पीसे उत्तर पूर्व २ मीलके अनुमान एक और जैन मंदिर उस मार्गपर है, जो तुंगभद्राके तटपर चला गया है। इन सब चिह्नोंसे प्रगट होता है कि एक समय यहां जैन मत बहुत उन्नतिमें फैला हुआ था । इन मंदिरोंका समय अनिश्चित है । ये सब मंदिर गणिगिती मंदिरसे पुराने हैं । ये सब मंदिरोंके ध्वंश देखने योग्य हैं ( Forgotten empire p. 244 ). विजयनगर में एक शिलालेख एक जैन मंदिर पर है । यह प्रसिद्ध जैन मंदिरके उत्तर पश्चिम द्वारकी दोनों तरफ अंकित है। यह संस्कृत में है । इसका भाव है कि शाका १३४८ में देवराज द्वि० श्री पार्श्वनाथजीका पाषाण जिन मंदिर- विजयनगरके पान-: सुपारी बाजार में बनवाया । यदुवंशी वुक्कका पुत्र हरिहर उसका देवराजम० उसका विनयः &
SR No.010131
Book TitleMadras aur Maisur Prant ke Prachin Jain Smarak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages373
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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