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________________ प्राचीन जैन स्मारक । चौडी व ४ इंच मोटी हैं। मंदिरके भीतर एक विशाल कायोत्सर्ग जैनमूर्ति मिली है जो घुटनोंसे ९ फुट ७॥ इंच ऊँची है। पगोंके नीचे पाषाणका आसन है । ऐसी ही दूसरी मूर्ति है वह घुटनोंके वहां खंडित है । पाषाण सफेद चूनेका सा है, इसी पाषाणकी और भी मूर्तियां मिली हैं। मंदिरके भीतरकी वेदीके सामने बाहरको एक बहुत सुन्दर श्वेत पाषाणका स्तंभ मिला है, आसन गोल है, यह २॥ फुट ऊँचा है, चारों तरफ चार बैठे आसन जैन तीर्थकरोंकी मूर्तियां हैं। हरएक तरफ एक सिंहपर एक२ यक्ष खड़े हैं। इसीमें मंदिरके सामने ही जो मुख्य तीर्थकरकी मूर्ति है उसपर पांच फणका नाग है। आसनके नीचे हाथी बने हैं, उपरके कोनेपर लेख है जिसका भाव यह है "स्वस्ति-ऐश्वर्यशाली नित्त्यवर्षने (जिसका निर्दोष राज्यकीय यश व्याप्त है और जो सदा ही बड़ा बलवान है ) इस पाषाणस्तंभको शांतिनाथ भगवानके महान अभिषेकोत्सवके हर्षमें बनवाया । बिष इतना विष नहीं है, जितना विष देवद्रव्य है। जो इस देवद्रव्यरूपी भयानक विषको लेता है उसके पुत्र, पौत्र सब नष्ट होते हैं। विष तो मात्र एक हीको मारता है।" यह मूर्ति अर्ध पद्मासन है। इम इंटोंके मंदिरसे १५ फुट दक्षिण दूसरे मंदिरकी पाषाणकी भी हैं । इस मंदिरका नकशा विजयनगरके मंदिरसे मिलता है व इन दोनोंका समय भी एकसा है। ईंटोंका मंदिर इससे कई शताब्दी पहलेका है। इसमें महा मंडप है जिसके चार खंभे हैं। मंदिरमें प्रतिमाकी वेदीका आसन २॥ फुट लम्बा है । ऐसे कई आसन इस मंडपके भिन्न स्थानोंपर हैं। इस मंडपके सामने
SR No.010131
Book TitleMadras aur Maisur Prant ke Prachin Jain Smarak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages373
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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