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________________ २८ ] प्राचीन जैन स्मारक । पुरातन्त्र - यहां उदयगिरिपर पहाड़ी किला व प्राचीन ध्वंश हैं। नेल्लोर जिलेकी उत्तर और खासकर ओन्गोले के पास बहुतसी जैन मूर्तियां व अन्य स्मारक देखे गए हैं। खास नेल्लोर में भी कलेक्टर की कचहरी के सामने तालाव खोदते हुए एक जैनमूर्ति मिली थी । यहांके गजटियर ( सन् १८७३ ) में लिखा है कि आर्यन् लोगोंने सीढ़ी कौमों को जीता। सीदी जातियोंने उत्तर भारत से प्राचीन द्राविड़ लोगोंको भगा दिया । द्राविड़ लोगोंने दक्षिण में अपनी स्वतंत्रता स्थिर की, देश और वसती स्थापित कीं। सबसे प्राचीन तेलुगू व्याकरणका लेखक कन्व होगया है जिसने चालुक्य वंशके अंध्रराजाकी आज्ञा से व्याकरण लिखी थी । इस राजाका पिता कृष्णानदीपर शिचकोलम् में राज्य करता था । फिर उसने अपनी राज्यधानी गोदावरी नदी तटपर बदली । यह राजा सन् ई० से कई शताब्दी पहले होगया है 1 यहां कुछ स्थान | (१) आत्मकूर - नेल्लोर से पश्चिम उत्तर २५ || मील । संगमके पश्चिम ८ मील । नगर के पश्चिम पहाड़ीपर एक पाषाणकी जैनमूर्ति है । (२) महिमालूरु - आत्मकूरसे पश्चिम ८ मील । ग्रामके दक्षिण जैनियोंके प्राचीन नगर बुदपादका स्थान है । मदरास सर्कारी पुरातत्त्व विभागने सन् १९२१-२२ में इस जिलेके नीचे लिखे फोटो लिये (१) नं० ७०८ - नेल्लोर के वेंकटगिरि कालेज में स्थापित एक जैनमूर्तिका चित्र ।
SR No.010131
Book TitleMadras aur Maisur Prant ke Prachin Jain Smarak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages373
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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