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________________ प्राचीन जैन स्मारक। उन पापाणके शस्त्रोंको बनाया था जो दक्षिणकी पहाड़ियोंके ऊपर बहुत अधिक संख्यामें पाए गए हैं। हालमें आश्रर्यकारक मरणस्थानोंकी खुदाई होकर जो बहुत सुन्दर वर्तन और शस्त्र टिनेवेली जिलेके आदिचनल्लूर और अन्य स्थानों में पाए गए हैं उनके कर्ता भी यहां के पुराने निवासी थे। यह अनुमान किया जाता है कि वे द्राविड वंशके थे। सम्पादकीय नोट-दक्षिण मथुरा या मदुग मिलेके पास ही टिनेवेली निला है। मैन शास्त्रोंसे प्रगट है कि युधिष्ठिर, भीमसेन, अर्जन, नकुल, सहदेव ये पांच पांडव अन धर्मी थे तथा कौरवोंसे व्युह होनेके पीछे अंतिम जीवनमें वे दक्षिण मथुरामें आए । यहीं राज्य किया और यहीं अंतमें जैन साधु होकर तप किया और पांचोंका शरीर त्याग काठियावाडके शत्रुजय पर्वतसे हुआ जिनमेंसे प्रथम तीनने मुक्ति पाई । ये पांडव द्राविड़ोंके राजा कहलाते थे। जैनशास्त्रानुसार पांडवोंका समय अवसे अनुमान ८८००० वर्ष पर्व है । अति प्राचीन प्राकत निर्वाणकांडमें नीचे लिखी गाथा है, उसमें इन पांडवोंको द्रविड़राजा लिखा हैगाथा-पंडमुत्रा निणिजणा दविटारिंदाण अट्ठकोडीओ। सेतुजय गिरि सहरे णियाणगया णमो तेसि ॥६॥ हिन्दी अनुवादःपांडव तोन द्रविड़ राजान | आठकोडि मुनि मुकति प्रयान । श्रोशत्रुजय गिरिके शास । भावसहित दो निशदोस ॥७॥ (भैया भगवतीदास कृत वि० सं० १७:1 में) प्राचीन इतिहास बताता है कि महाराज अशोक (२५० वर्ष सन ई. से पहले) के शिलास्तम्भ गंजम निलेके नौगढ़ स्थान पर
SR No.010131
Book TitleMadras aur Maisur Prant ke Prachin Jain Smarak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages373
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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