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________________ मदरास व मैमूर प्रान्त। [३२५ थे जो विद्यानंदि मुनीश्वरके वंशमें देवेन्द्रकीतिके शिष्य थे। (९४) नं० १९१ सन् ११८० ? वानसालेमें वस्तीके पास। महामंडलेश्वर मंडल महिपालके सर्वाधिकारी श्रीपद्मप्रभुदेवके शिष्य वैजनके पुत्र, वायलसेन वोवके भाई चगसेन वोक्ने समाधिमरण किया। (९५) नं० १९२ सन् १? ०३ । चालुक्य त्रिभुवनमल्लके राज्यमें । उग्रवंशी अजवलि सांतारने णेम्बुलीमें पंच वस्ती बनवाई उसीके सामने अनन्दरमें चत्तलदेवी और त्रिभुवनमल्ल सांतारदेवने एक पाषाणको वस्ती श्री दाविल संघ अरुंगलान्वयके अजितसेन पंडितदेव वादि घरट्टके नामसे बनवाई । (९६) नं० १९७ सन १३६३. कनवे ग्राम, नंदगद्देके पास कल्ल्ट वस्तीमें । जब मूलस० देशीगण पुस्तकगच्छमें चारुकीर्ति पंडितदेव थे व माले राज्यमें वीरमुक्त महारान और उसके पुत्र वीरपन्न ओडयर राज्य करते थे तर वेदरनादके लोगोंसे और मंदिरके आचार्यसे श्रीपार्श्वनाथ वस्तीकी ममिके सम्बन्धमें जो हेड्डानादमें तदुतालमें थी, झगड़ा होगया। नः महामंत्री नागन्ना, अरसू, जैन मलप्पा व तीन मंदिर व १८ कम्पन के लोगोंने मिलकर आरग चावड़ीमें जांचकर हद्द कायम कर दी। ___ (९६) नं० १९८ सन् १०९० : वाह । होसालदेवके महामंत्री भंडारी चंडिमय्याकी स्त्री बोप्पवेने पमाधिमरण किया । (९८) नं० १९९ सन् १०९३ : वहीं। मूल • सुंद० देशीग. के मलधारीदेवके शिप्य शुभचन्द्रने समाधिमरण किया।
SR No.010131
Book TitleMadras aur Maisur Prant ke Prachin Jain Smarak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages373
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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