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________________ ३२४] प्राचीन जैन स्मारक । नस्वामी नोकप्पासेठीने तत्त्वार्थसुत्रपर कनड़ीमें सिद्धांतरत्नाकर नामकी वृत्ति रची जिसे उसके पुत्र मल्लामने लिखी। (९०) नं० ५८ सन् १०६२ सुले वस्तीके सामने । नन्निसांतारके राज्यमें पट्टनस्वामी नोकथ्यासेठीने पट्टनस्वामी जिनालय बनवाया व वीरसांतारसे मोलकेरी ग्राम पाकर उसे व ग्राम कुक्कडवल्लीको सकलचन्द्र पंडितदेव सहधर्मीके चरण धोकर दान किया । पट्टनस्वामी बड़े धर्मात्मा थे । इनका नाम सम्यक्तवाराशि प्रसिद्ध था । इसने महुरामें जवाहरात व सुवर्णकी प्रतिमा बनवाई व कई सरोवर बनवाए। (९१) नं० ५९ ता० १०६६ । चन्द्रप्रभु वस्तीके बाहरी भीतपर । भुनवल सांतारदेवने कनकनंदि मुनिकी सेवामें हरवरो, आम अपने बनाए जिनालयके लिये दिया । (९२) नं० ६० सन् ८९७-गुड्डुडवम्तीकी बाहरी भीत। तैल पुरुष विद्ययादित्य सांतारने कुन्द ० मुनि सिद्धांत भट्टारकके लिये पापाणका जिन मंदिर बनवाया। ता० तार्थहल्लो । (९३) नं० १६६ सन १६१० ग्राम मेलिंगे । आदिनाथ वस्तीमें रंगमंडपके दक्षिण पश्रिम । पहले अनन्तनाथको स्तुति है फिर अन्वय देशके पोंडगोंडे दबार के बेंकटपति देवरायके राज्यमें । इसके राज्य में नगर आरग था । भुवनगिरिके पूर्व जिसका शासक वेंकटौदि महिपाल था । इसके आधीन मुत्तरपर सोम्मनी हेगड़े राज्य करते थे तब बर्द्धमान सेठीके पुत्रने अनंत जिनका मंदिर बनवाया व दान दिया। गुरु बलात्कारगणमें भ० विशालकीर्ति
SR No.010131
Book TitleMadras aur Maisur Prant ke Prachin Jain Smarak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages373
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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