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________________ मदरास व मैमूर प्रान्त। [३०३ लोकमय्याके पुत्र हेगड़े चांडिमय्याने कुरुलीमें अपनी भूमि कलिपमल्लसेठीको वेची । उसने महाराजाके सामने श्रीबालचंद्र देवकी सेवामें अर्पण की। (६) श्री पम्मासेठी और उसके दो पुत्रोंने ननियरसदेवके सन्मुख श्री बालचन्द्रदेवकी सेवामें हल्लबूर ग्राममें भूमिदान दी। (७) नं० ८९ सन् ११११, वेलगामीमें, कदरेश्वर मंदिरके वरामदेके पश्चिम द्वारके खम्भेपर । चालुक्य विक्रमकालके ३५ वर्षमें विट्टिदेव भुजबल गंग पर्मादीने भूमि दान की। (७) नं० ९७ सन् १११३ ग्राम आलहल्ली, तलवरकी भूमिमें मूलसंघ देशीगण, मलधारी देवके शिप्य शुभचंद्र देव मुनिपके शिष्य प्राविका गंग परमादीदेवकी रानी वाचालदेवीने अपने बड़े भाई बाहुबलिकी सम्मतिसे वम्मीकेरीमें एक सुन्दर जिन मंदिर बनवाया तब श्रीपार्श्वनाथके लिये भुजबल गंग परमादीदेव, गंग महादेवी, ओरगडेवा चालदेवी, कुमार गंगरस, मारसिंहदेव, गोगीदेव, कलियंगदेव और सब मंत्रियोंने भूमि दान की। (८) नं० ११४ सन ९५०,--ग्राम कुमसी, कीलेके पाषाण कमरेके पास । कलसेके राजाओं वा कनकाकुलमें जिनदत्तरायने जिनेन्द्र के लिये कम्बासीपुर भेट किया उसकी आज्ञासे अधिकारी वोम्मिरल, अन्य गौड और टोंने भी कुम्बासिके जैन मंदिरके लिये वार्षिक मदद दी। ता० शिकारपुर । (२) नं० १२० सन् १०४८, सोमेश्वर तीर्थनके पास वेलगामी ग्राम । वनवासीके राना चालुक्य चामुण्डराय; इसने अपनी
SR No.010131
Book TitleMadras aur Maisur Prant ke Prachin Jain Smarak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages373
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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