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________________ ३०२] प्राचीन जैन स्मारक। लिये नोक्कयाकी वीरता और उदारताके इनाममें गंगपरमादीदेवने राज्यकीय चमर, ढोल, छतर आदि दिये यह नोक्कप्या मूलसंघ क्राणूरगण मेष पाषाणगच्छके प्रभाचंद्र सिद्धांतदेवका शिष्य श्रावक था। शांतिके मंत्री दामरानाने यह जिनशासन स्थापित किया । (४) नं० ५७ सन् १११५ ई० । नीदिगी ग्राम, दोद्दामने नविलप्प गौडके खेतमें पाषाण नन्नियगंगके राज्यमें, कलम्बुरुके शासक नगरवर्मी सेठीने जिन मंदिर बनवाया। इसके लिये महाराज गंगने कर विना भूमि दी जिसे शुभकीर्ति देव भ० के चरणोंमें सेठीने समर्पण किया । (५) नं० ६४ सन् ११ १२, पुरले ग्राम-ग्रामसे द० प० वीर सोमेश्वर मंदिरके सामने पाषाणपर । ___ (१) एरयंग होयसालके जमाई हेम्मदी आरसने क्राणूरगणमें एक जैन मंदिर बनवाया । (२) नारसिंहदेव होसालके राज्यमें उसके मंत्री तिप्पनभूपति व छोटे भाई नागचाभूपति व उसकी भार्या चामलदेवीने दान किया। (३) जब हेम्नदीदेव आरस हरिगेमें राज्य करते थे तब उसने कुतिलापुरमें निनमंदिर बनवाया और शाका ९८९ या सन् १०६७ में उसकी पूजाके लिये प्रमाचंद्र मि० देवके चरणोंमें दान किया । (४) जब सत्त्यांगदेव पदेहाली में राज्य करते थे तब उसने कुरुलतीर्थमें जिनालय बनवाया और शाका १०५४ (शायद १०३४) में माधवचंद्रके चरणों में भूमि दान की। (५) गंग हादोदेवके सामने वागीके सर्वाधिकारी हेगड़े
SR No.010131
Book TitleMadras aur Maisur Prant ke Prachin Jain Smarak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages373
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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