SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 334
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३०० ] प्राचीन जैन स्मारक । इसके पीछे श्री अकलंकके पदको सुशोभित करनेवाले काणूरगणके मेष पाषाण गच्छके प्रभाचंद्र सिद्धांतदेव हुए। इनके शिष्य माघनंदि सिद्धांतदेव हुए। इनके शिष्य चतुरास्य प्रभाचन्द्र। इनके साथी मुनि अनंतवीर्य, मुनि मुनिचन्द्र हुए जो बड़े पूज्यनीय थे । इनके शिष्य विद्वान श्रुतकीर्ति या कनकनंदि हुए मिनको प्रशंसा राजाओंके दरबारों में होती थी। इनका नाम प्रसिद्ध था-त्रिभुवनमल्ल वादिराज | इनके शिप्य विद्य वालचन्द्र यतीन्द्र थे । जब प्रभाचंद्र सिद्धांतदेवके शिष्य बुद्धचन्द्रदेव विद्यमान थे तब प्रभाचंद्रका शिप्य श्रावक बम्मदेव व सुनवल गंग परमादी देव था । इसने दकिंग और माधवरूत मंदिलीके जैन मंदिरको फिरसे बनवाया तथा उसका नाम पट्टदवस्ती रक्खा । इसके पुत्र थे-मारसिंह, प्रसिद्ध नन्निवगंग, राक्षप्तगंग और भुजवलगंग । __माघनंद सिद्धांतदेवका शिप्य मारसिंह था जिसने अदीवलीमें भूमि दान की । प्रभाचंद्र सि देवका शिप्य नन्नियगंग था जिसने श्रीरेपूरमें भूमि दान की, शामा ९७६ या सन् १०५४ में । अनंतवीर्य सि० देवका शिष्य था राक्षसगंग । इसने भी भूमिदान की। मुनि चंद्रसि देवका शिष्य था भुनबलगंग । यह बहु वीर था। इसने शत्रुओंसे कई किले लेलिये। इस भुनश्चल गंग परमादीदेवने शाका १०२७ या सन् ११०५में मंदलकी पट्टद तीर्थके निनमंदिरके लिये व दानके लिये हेग् गनगिलेमें भूमिदान की। ___ इसका पुत्र नन्नियगंग सत्य वाक्य कोंगनीवर्मा धर्म महाराजाधिराज परमेश्वर प्रभाचंद्र सि०देवका शिष्य था । इसने अपने
SR No.010131
Book TitleMadras aur Maisur Prant ke Prachin Jain Smarak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages373
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy